Thursday 11 September 2014

चाहिए मुझको बस मेरा राँझा.. (मेहर)

चाहिए मुझको बस मेरा राँझा..
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सूफी संत कवि बुल्लेशाह का नाम और कलाम परिचय का मोहताज़ नहीं. बुल्ला ईश्वरीय प्रेम के पक्षधर थे, ऐसा प्रेम जिस में उतरकर कर मनुष्य मात्र कि नैय्या पार लगती है और वह इस दुनियां में भी श्रेष्ठ मानव के रूप में जाना जाता है.
प्रस्तुत रचना बुल्लेशाह के 'इक रांझा मैनूं लोड़ीदा' का भावानुवाद करने का प्रयास है. राँझा से तात्पर्य सदगुरु से है. अहद शब्द प्रतिज्ञा, वचन, जमाना, युग और समय जैसे शब्दों को व्यक्त करता है. अहमद का अर्थ है बहु-प्रशंसित. इस नाम से पैगम्बर मुहम्मद साहब को भी पुकारा जाता है.
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चाहिए मुझे बस मेरा राँझा
चाहिए मुझे बस मेरा राँझा.....

आयत एक पवित्र कुरान की 
कहा खुदा ने -हो जा, हो गया*,
प्रेम है चिरंतन ना है कोई लुका चोरी
सब जग़ ज़ाहिर हो गया.

राँझा खुद तो चला गया है
लेकर संग में अपने भैंसे,
हम अकेले जब जब जाएँ
हम को क्यों वो रोके ऐसे ?

ऐसा है यह गहरा नाता
रांझें सा कोई हमें ना भाता,
वो जाएँ/हम रोकें उसको
दिल मिन्नत कर कर हर्षाता.

अनुनय भरी मनुहार औ रब्बा
नयन मानिनी के बड़े सलोने,
सर पर प्यार का लाल दुपट्टा
अरमान भरे हैं कोने कोने.

अहद और अहमद में
फर्क नहीं कुछ पाया हम ने,
'म' लगा कर बस होले से
बना दिया है अहमद हम ने.

चाहिए मुझे बस मेरा राँझा
चाहिए मुझे बस मेरा राँझा.....

*कुन फ़यकुन

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