Wednesday 11 March 2015

निमंत्रित हुआ नियंत्रित..: विजया

निमंत्रित हुआ नियंत्रित..
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(यह रचना मैंने अपने जीवन साथी के साथ मिलकर बुनी है..एक स्थिति जो अक्सर देखते हैं आसपास उसे शब्द देने का प्रयास है. smile emoticon )
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निमंत्रित हुआ नियंत्रित...
फूटी थी कोंपले कोमल
हरित हुए थे बूटे
गाते हम
उन्मुक्त क्षणों में
साथी साथ ना छूटे,
हुआ संग जब
पल प्रतिपल का
सब कुछ ज्यों अभियन्त्रित,
निमंत्रित हुआ नियंत्रित...
जब से लगा ठप्पा
रस्मों का
बदली है परिभाषा,
ऊर्जा उत्साह उद्दीप्ति को
लील रही हताशा
कल तक जो जागृत जीवंत था
हुआ आज प्रस्तरित
निमंत्रित हुआ नियंत्रित..
आस आस का
हुआ है लेखा
सांस सांस की गणना,
पहरे हैं पल पल
हरक़त पर
बात बात पर डरना
सब कुछ अब तेरी मर्ज़ी पर
नहीं कुछ भी है चित्रित,
निमंत्रित हुआ नियंत्रित...
द्वार सभी पर
पड़े हैं ताले
बंद हुए वातायन
निर्मल समीर की चाहना में
लगा है घुटने तनमन,
विकट पिपासा
आकुल ह्रदय है
सब कुछ तुम से मंत्रित,
निमंत्रित हुआ नियंत्रित...

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