Wednesday 11 March 2015

असीम

असीम 
# # # 
सीमित है 

जो हो चुका
और 
जो हो रहा है घटित,
असीमित तो है 
संभावनाएं
छोड़ देते हैं जिन्हें हम 
अनछुआ
अनन्वेषित 
लेकर आड़ 
भवितव्यता की,
खो जाते हैं हम 
तलाशते तलाशते 
विगत और वर्तमान की 
सीमाओं को 
करते हुए 
विश्लेषण और छिद्रान्वेषण
दौड़ाते हुए अश्व कल्पनाओं के
बद्ध कर स्वयं को 
पूर्वाग्रहों की मेख से, 
करते हुए परिक्रमा 
कोल्हू के बैल बन कर 
बंधी हो पट्टी 
जिसकी आँखों पर 
समूह की खोखली 
मान्यताओं 
रस्मों रिवाजों 
और 
विधियों की,
करते रहते हैं 
हम भूल निशि दिन
अथाह को असीम समझने की,
या मान लेते हैं 
संभावनाएं 
एक परिभाषित भविष्य को,
जलाते हुए एक दीया 
अपनी ही भित्ति के आले में
करके विस्मृत कि 
एक खुला घर भी है 
असीम संभावनाओं का 
परे इन चार दीवारों के...

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