Sunday 1 March 2015

अनकहा

अनकहा 
# # # # 
जब तुम और मैं 
हो कर मौन 
बैठे हों 
अपनी अपनी जगहों पर 
आ जा रहे होते हैं
कुछ स्पंदन, 
ना जाने 
किन तरंगों पर 
होकर सवार 
अनकहा 
पहुँच जाता है 
एक दूजे तक,
रहने दो ना 
इसे भी एक रहस्य
अपने इस रिश्ते की 
मानिंद, 
हो गया 
जिस पल 
नामकरण उसका ,
घेर लेगी 
ना जाने कितनी 
लिखी अनलिखी 
परिभाषाएं
अवांछित हो जाएगा 
मौन संवाद भी 
और
मजबूरन लिपट कर 
शब्दों से 
हो जाएगा बदनाम
कुछ अनाम भी...

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