Thursday 19 March 2015

बेबसी

बेबसी 
# # #
आलम बेबसी का 
हुआ कुछ ऐसा
मंजिल सामने 
मगर पाँव हैं कि 
बढ़ते नहीं, 
जनाजा ख्वाहिशों का 
छूने को बेताब कंधे 
मर्सिया मौत का मगर 
शेखजी 
पढ़ते नहीं,
लड़खड़ायें हैं कदम 
बिन पिये यारों 
मैखाने के रिंद 
खुद ब खुद 
सँभलते नहीं,
जुलुम जी चाहा
किया करे कोई 
महल चाहतों के 
कभी 
ढहते नहीं, 
सींचे कोई 
कितना ही क्यों
खिज़ा के चमन में 
गुल ओ बुलबुल
कभी 
खिलते नहीं...

No comments:

Post a Comment