मरीचिका...
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हो गया जो सागर मरीचिका जैसा ही
लगने लगा है जलधि फिर से यूँ तो क्या,
हो गयी है पथ्य पीर जो स्वयं ही
उपचार इस व्यथा का हुआ है यूँ तो क्या,
लौटाया है सहृदयता ने अर्जन मेरा ही
आँखों में पुन: प्रेम बिम्ब दरसा यूँ तो क्या,
मुस्कान अधरों की है प्रभाव स्पर्श का
स्मित हृदय में नहीं खिल सका यूँ तो क्या,
डूब रही है जीवन-नैय्या प्रतिपल
सहारा बाहुओं का मिला भी यूँ तो क्या,
हुई बंद मेरी पलकें तकते हुए राहों को
आना प्रीतम का फिर हुआ भी यूँ तो क्या,
आलोकित है श्मशान चिता की लौ से
मृत्यु संग एक सहारा मिला भी यूँ तो क्या.
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