Friday 11 May 2018

बेताबियाँ....


कुछ बेताबियाँ होती है फ़सल
जिस्म ओ ज़ेहन की
दिल ओ रूह में तू झाँक तो ज़रा,
जो है पास, संभाल ले उसे शिद्दत से
ज़िंदगी का गुलशन तो है
खिला खिला और भरा भरा,
मुरझाए हुए चन्द फूलों पर
गँवा रहा है तू क्यों  सुकूँ अपना,
नज़र दौड़ा कर देख
सब कुछ तो है यहाँ हरा हरा,,,,,

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