Friday, 11 May 2018

प्रेम हो जी लें,,,,,,,


प्रेम हो जी लें,,,,,
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नयनों से हो आत्मा परितृप्त,
भाग्य हो त्वम-मम मिलन से जागृत,
ना हो अधरों पर कोई शिकायत
प्रीति हो स्पंदनों से ही अभिव्यक्त,
बीते जा रही है रजनी
सुन ले तू मुझको ए सजनी !
आ फिर से हम,प्रेम हो जी लें,,,,

पवन ने शीतल राग है गाया
मन कोंपलों का कसमसाया,
हो गए दीये भी कुछ मलिन से
उमंगित परिवेश देखो मुस्कुराया,
कह रही है युवती निशा
अतिप्रसन्न है दसों दिशा
आ फिर से हम, प्रेम हो जी लें,,,,,

बाहें नरम डालियों की लचकती
संवादोत्सुक राहें क्यों मचलती,
होठों पे बोल कुछ उलझे हुए से
बात दिल की निगाहों से छलकती,
कह रहे अनकहा होठों के कम्पन
समझ कर हृदय के स्पंदन
आ फिर से हम,प्रेम हो जी लें,,,,,

स्वप्नहीन चेहरे पर है क्यों उदासी
तरो ताज़ा भोर, चाँदनी बासी बासी,
लिए जा रही अंगड़ाइयाँ रग रग भी
पिघला है अंतस नज़र प्यासी प्यासी,
हृदय की व्याकुल है धड़कन
कह रही रौं रौं की फड़कन
आ फिर से हम,प्रेम हो जी लें,,,,,

चमत्कृत अस्तित्व है रोम रोम सिहरन
स्पर्श की अनुभूति और साकार चुम्बन,
मौन से कह देना,मौन को सुन लेना
घटित आज देखो यह कैसा आलिंगन,
कठिन है कितना जानां
तुझमें तुझको पाना
आ फ़िर से हम,प्रेम हो जी लें,,,,,

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