Sunday, 30 September 2018

जुबाँ मोहब्बत की : विजया



पढ़ लेते हैं जो
जुबां आंखों की
फ़क़त कहने को,
अनजान है उल्फ़त से
कहते हैं प्यार
महज़ बहने को,
गुज़रने को
हर शब ओ दिन
गुज़र जायेंगे,
सितम बाकी है
मुहब्बत में
अभी सहने को...

No comments:

Post a Comment