वैसी ही बाजी,,,,,
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सुनो !
पूरब पश्चिम
उत्तर दक्षिण
कहीं भी खेल लो
एक से हैं करीब करीब
कायदे इस शतरंज के,
वो ही नीयत जगहें है
वो ही नीयत चालें
वजीर बादशाह के पास या
कोई कहे
रानी राजा के पास,
घोड़े की चाल
अढाई घर की,
हाथी सीधा
ऊंट तिरछा
और
प्यादा एक चाल सीधी
मगर
मारे तो टेढ़ी
और उसकी तरक्की के
कायदे भी तो वही
चलते चलते
जहाँ पहुंचेगा
बन जाएगा
वही तो,
शह भी वही
वो ही मात,
सच्च मानो
शुरू में बहुत कुछ
अलग सा लगता है
मगर
कुछ देर में हो जाता है
महसूस
अरे यह तो है
वैसी ही बाजी
जो खेली थी
हम ने
कभी किसी के संग भी,
कभी जीते थे
कभी हारे थे जिसमे,,,,
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