छोटे छोटे एहसास
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कविताएँ ऐसे ही उतरती है बिलकुल सहज और नैसर्गिक.
नन्ही अन्वी कल रात (मगर आज ही की तारीख़) विदेश में अपने 'स्वीट होम' से 'होम लैंड' आयी है.
इतवार और वो भी बंगाल का.....बहुत ही रोचक होता है......सुबह शुरू होती है गरम नाश्ते और मिठाई से चाहे राधवल्लभी/कोचुड़ी/खोस्ता/सिंघारा/चॉप हो छोलार डाल/आलू दम के साथ या कुछ और नमकीन और मिश्टि में सोन्देश, रोसोगोल्ला, पंतुआ या ऐसा ही कुछ...
हाँ तो बूँदा बाँदी हो रही है, हल्की सी बारिश की बूँदे और फुहारें गिर रही है और उनकी छुअन एक अनिर्वचनीय आनंद दे रही है....मेरा हाथ है उसके हाथ में और हम लोग खुले आसमान के नीचे साथ साथ भीग रहे हैं. अनायास ही उसने जो कहा उसे शब्द दिए हैं मैंने.
नहीं जुदा हैं अब मुझ से,,,,,
****************
बारिश की
इन नन्हीं बूँदों को
इन सुखद फुहारों को
देख सकती हूँ मैं
जैसी दिखती हैं वो
जब तक ये
होती हैं दूर मुझ से,
आकर मिल जाती है मुझ से
ज्यों ही छू कर मुझ को
खो देती है ये आकार अपना
नहीं लगता है मुझे
ये जुदा है अब मुझ से,,,,,,
यही बात एक और अन्दाज़ में 😊: by Mudita Garg
मोतियों सी झरती
नन्ही बूंदे
बारिश की
दिखती हैं
तभी तक मुझे
होती हैं दूर जब तक
छूते ही मुझे
हो जाती एकमेव
जिस्म से मेरे
करती हूं महसूस
बस भीगा हुआ
खुद को........
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कविताएँ ऐसे ही उतरती है बिलकुल सहज और नैसर्गिक.
नन्ही अन्वी कल रात (मगर आज ही की तारीख़) विदेश में अपने 'स्वीट होम' से 'होम लैंड' आयी है.
इतवार और वो भी बंगाल का.....बहुत ही रोचक होता है......सुबह शुरू होती है गरम नाश्ते और मिठाई से चाहे राधवल्लभी/कोचुड़ी/खोस्ता/सिंघारा/चॉप हो छोलार डाल/आलू दम के साथ या कुछ और नमकीन और मिश्टि में सोन्देश, रोसोगोल्ला, पंतुआ या ऐसा ही कुछ...
हाँ तो बूँदा बाँदी हो रही है, हल्की सी बारिश की बूँदे और फुहारें गिर रही है और उनकी छुअन एक अनिर्वचनीय आनंद दे रही है....मेरा हाथ है उसके हाथ में और हम लोग खुले आसमान के नीचे साथ साथ भीग रहे हैं. अनायास ही उसने जो कहा उसे शब्द दिए हैं मैंने.
नहीं जुदा हैं अब मुझ से,,,,,
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बारिश की
इन नन्हीं बूँदों को
इन सुखद फुहारों को
देख सकती हूँ मैं
जैसी दिखती हैं वो
जब तक ये
होती हैं दूर मुझ से,
आकर मिल जाती है मुझ से
ज्यों ही छू कर मुझ को
खो देती है ये आकार अपना
नहीं लगता है मुझे
ये जुदा है अब मुझ से,,,,,,
यही बात एक और अन्दाज़ में 😊: by Mudita Garg
मोतियों सी झरती
नन्ही बूंदे
बारिश की
दिखती हैं
तभी तक मुझे
होती हैं दूर जब तक
छूते ही मुझे
हो जाती एकमेव
जिस्म से मेरे
करती हूं महसूस
बस भीगा हुआ
खुद को........
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