Wednesday, 3 January 2018

मुहबत नहीं तो फिर क्या है



मुहब्बत नहीं तो ये इरादे फिर क्या है,,,,,,
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छू ना पाऊँ जो उसको साथ फिर क्या है
जुदाई का सबब ना है तो ये फिर क्या है.
लगी है आग बहरे दिल में जब से मेरे
लौ दिए की या आबे दीद फिर क्या है.
हो जाते हैं शिकवे भी मुहब्बत  में याराँ
मुहब्बत नहीं तो ये इरादे फिर क्या है.
हमने तो जिया है हर लम्हे फ़क़त उनको
मुझ पे एहसासे इज़ा हिज्राँ फिर क्या है.
लब चुप है अताब सोज़ ओ गुदाजाँ  है
चश्म ज़ाहिर बी से ये देखा फिर क्या है.
क्या कहूँ  मख्मूर हूँ मैं रात और दिन को
कैफियत ऐसी कि मेरी खुदी फिर क्या है.
मक्सूब जो था क्या यूँ ही गँवा डाला मैंने
मसला ए मक्सूम ओ अलैह  फिर क्या है.
डर है न निकल जाए मुंह से मेरे हर्फ़े राज
बंदये गयूर हूँ शक्लो शमाइ फिर क्या है.
मायने :
बहरे दिल=ह्रदय का सागर, आबे चश्म=आँख का पानी, इज़ा=कष्ट, हिज्राँ=विरह, अताब=क्रोध, सोज़=जलन
गुदाजाँ=पिघलता हुआ (रोने के सेंस में)चश्म ज़ाहिर बी=ऊपरी आँख,
मख्मूर=नशे में चूर, कैफियत=दशा, खुदी=गर्व, हर्फ़े राज=भेद की बात, बंदये गयूर=शर्मीला मर्द/ स्वाभिमानी पुरुष, शक्ल=सूरत शमाइल=स्वभाव, मक्सूब=अर्जित, मक्सूम= भाज्य याने  dividend, अलैह=divisor याने जिस नंबर से भाग देन

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