दोस्ती : दो ध्रुव
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सोच रही थी
रिश्तों में ज़ज़्बात और समझ की
अनूठी सी कीमिया
हम बना पाते हैं
अपने दिल और दिमाग में
संतुलन करके या
देकर किसी अधूरी वांछा को
कोई कवितात्मक रूप देकर....
देखे हैं में ने अनगिनत
उतार और चढ़ाव
खुद के ही रिश्तों में
मगर पाया है सुकून ओ लज़्ज़त
एक ऐसे इंसान के संग
जो जिया करता है ज़िन्दगी
दिल ओ दिमाग की प्रतिबद्धता से
स्वयं के साथ
औरों के साथ
अस्तित्व के साथ
अपनी सोच, भावों और सपनों को
जमीनी तामीर देकर......
गुज़ारे हैं हमने ये कुछ लम्हे इन दिनों
उस जैसे ही एक इंसान के संग
जिसके लिए मिशन है
अपनों की ज़िंदगी को संवारना
बिना किसी लफ़्फ़ाज़ी
और दिखावे के,
जोड़ना टूटे हुओं को
राह दिखाना भटके हुओं को
रिश्तों में कोरी भावुकता से हट कर
मज़बूत भावनात्मकता और संवेदना देकर....
बिन बोले बहुत कुछ किया है
महसूस में ने
जिस जिस को देखा
बिना किसी आग्रह के
खुशियां जीते हुए,
उन दो इंसानों को बिन बोले
एक दूजे को सालों से समझते हुए
मौत और ज़िन्दगी से
एक सा झूझते हुए
दोस्ती को एक नए मायने देकर
जिसमें साथ घूमना फिरना
खाना पीना बाहरी मनोरंजन नहीं
बस साथ रहते हुए
साथ बैठे हुए
काम करते हुए
दो ध्रुव मगर मिल जुल कर......
लिख रही हूं ये चंद लाइने
सनद रहे उन
भीतरी तजुर्बों की
जिन्हें मुश्किल है
कह पाना पूरे पूरे अल्फ़ाज़ देकर....
(जयपुर एयर् पोर्ट और इन् फ्लाइट....चेन्नई को)
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