Wednesday, 3 January 2018

रूठ है खुदा तुम से,,,,,,,




रूठा है खुदा तुम से,,,,,,

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फ़ासले दिल के ज़ुबां से ना भर 
रास आए  ना प्यार की ये नज़र.

उम्र होती हैं मोहब्बत की भी यक 
ज़िंदा रहेगी हर पल ग़ुमां ना कर.

ज़ख़्म होते है हरे  फ़ितरत उनकी 
लगने दे खुली हवा मरहम ना कर.

क़ुबूल है हर गुनाह किया ना किया 
क़ातिल तेरा मुंसिफ़ गिला ना कर.

लिखी है ख़ुशियाँ जिया है उनको 
ग़म आएँ जो दर पे शिकवा ना कर.

दीद नम से बहे जाता है दर्दे दिल 
संभाल ले ख़ुद को उम्मीद ना कर.

क़तरा ए ख़ून से लिख दे तू ग़ज़ल
रूठा है खुदा तुझ से  दुआ ना कर.

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