Monday, 1 June 2015

सरल : विजया

सरल
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सरल और जटिल 

कितने सापेक्ष होते हैं
जो सरल है 
तुम्हारे लिए 
वही तो जटिल है 
मेरे लिए,
भावनाएं
असुरक्षाएं 
मान्यताएं
चिंतन 
स्पंदन 
समय 
परिस्थितियाँ 
माहौल 
नकारे नहीं जा सकते 
कितना ही दूषित हो 
पर्यावरण 
साँसें तो लेते हैं ना,
कितनी ही मिलावट हो
खाते तो हैं ना,
अपाहिजता 
और 
अस्वस्थता के साथ भी 
भरपूर जिया जाता है ना...

आदर्शों की बातें 
इतिहास कहने के लिए 
अच्छी हो सकती है,
बड़े बड़े महलों की 
नीवें भी कच्ची हो सकती है
बहुत सी कल्पनाएँ 
केवल किताबों में 
सच्ची हो सकती है
जीना पर्वत का पत्थर है तो 
नदिया की कलकल भी, 
ज़िन्दगी अमृत भी है
तो गरल भी है,
चीजें जटिल भी है 
तो सरल भी है,
जीवन को मत बांधों 
सुविधा की परिभाषा में 
सब कुछ ठोस भी है 
तो तरल भी है...

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