Monday 7 September 2020

आख़िर मैं कौन,,,,


आख़िर मैं कौन,,,

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होने के लिए साधना 

होता है कसना मौन को 

क्रिया और प्रतिक्रिया की 

कसौटी पर

हो जाता है मौन कभी 

एक ख़ुदगर्ज़ दावा 

भागते भूत की लंगौटी पर,,,


होता है घटित मौन

अंतरंग की चेतना संग

तो बन जाता है साधना 

कभी कर्म, 

कभी ज्ञान, 

कभी आराधना,,,


यदि है चुप्पी 

प्रतिक्रिया जनित 

हृदयस्थल में आड़ोलन संग 

तो मौन है पलायन 

वास्तविकता से 

भटकाना सच को

मस्तिष्क में विड़ोलन संग,,,


मौन में भी 

सुनाई देता है शोर 

कानाफूसियों में 

बतियाता रहता है 

मन का चोर,,,


शब्दों के बीच भी 

गूंजता है मौन 

इसी रहस्य की तलाश में 

होता है निहित 

यह प्रश्न 

"आख़िर मैं कौन ?"

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