Friday 16 June 2023

मैं बस तड़फ कर रह जाती हूँ...

 विदुषी का विनिमय सीरीज़ 

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🔹उपन्यास के प्लॉट के लिए आपके सुझावों (यहाँ और/या मेसेज बॉक्स में) के लिए भी गुज़ारिश है.🔹


मैं बस तड़फ कर रह जाती हूँ...

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स्वकथ्य

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"विदुषी सीरीज़" की कुछ कथाएँ मैने सृजन पटल और अन्यत्र भी पोस्ट की जिनके लिए उत्साहजनक फीडबेक्स मिले. कुछ लेखक और मनोवैज्ञानिक मित्रों के सुझाव भी आए और आ रहे हैं . कुछ पढ़ने वालों ने अपनी आपबीतियां भी खुल कर शेयर की, अपनी ग्रंथियों को सामने रखा, अपनी उलझनों को ईमानदारी से बताया और उन्हें अपने विश्लेषण और लेखन में मैं यथोचित रूप में शुमार करूँ इस पर ख़ुद से चला कर कहा. मेरे एक प्रकाशक मित्र ने,जो स्वयं एक लेखक भी है, मुझे मोटिवेट किया कि मानवीय संबंधों पर आधारित इस सीरीज़ को नये सिरे से लिखूँ एक उपन्यास का रूप देकर. कथानक पर नोट्स बनाते हुए सोचा क्यों ना उन्हें थोड़ा सा प्रेजेंटेबल करके सृजन में पोस्ट भी करता रहूँ ताकि उपन्यास पर सहज में ही काम आगे बढ़ता जाए.


▪️लेखन में आए स्वयं और अन्यों के व्यवहार, स्वभाव, ट्रेट्स  या अंतर्व्यथा की बातें प्लस घटित वाक़ये कितने सच कितने कल्पना आधारित यह विषय नहीं, जजमेंटल होकर देखना उचित और उपयुक्त नहीं. यह मानसिकता और मनस्थिति की बातें हैं जिनकी  गहराई में अवचेतन में रहने वाले बहुत से फ़ेक्टर्स का रोल रहता है, मनुष्य जिस वातावरण में जिया और जी रहा है उसके प्रभाव होते हैं, वांछाओं और आवश्यकताओं को पूरा करने की जद्दोजहद भी होती है, हार्मोन्स का रोल होता है, शारीरिक स्वास्थ्य का असर भी होता है, क्रिया-प्रतिक्रियाएँ होती है, कई एक अनजाने कारण भी होते हैं. सापेक्ष होती है चीजें द्रव्य, क्षेत्र, भाव और काल के संदर्भ में. हाँ उनके बीच से गुज़रते हुए कुछेक बुनियादी तथ्य और सत्य भी एक्सट्रैक्ट हो जाते हैं.


▪️क़िस्से कथायें उदाहरण केवल विषय को comprehend करने के साधन होते हैं, कल्पना और वास्तविकता के मिक्स... इन्हें स्त्री या पुरुष से स्पेसिफिक होकर ना जोड़ा जाय. ये केस स्टडीज़ के लिए जेंडर न्यूट्रल ह्यूमन हैपेनिंग्स का विवरण है. ये ना तो स्त्री विमर्श है और ना ही पुरुष का महिमा मंडन. जैसा कि मैं ने कहा,मेरे आगामी उपन्यास के लिए प्लॉट के नोट्स भी हैं ये.


▪️स्वयं के स्वभाव और अंतर्व्यथा की बातें प्लस घटित वाक़ये कितने सच कितने कल्पना आधारित यह विषय नहीं, जजमेंटल होकर देखना भी उचित और उपयुक्त नहीं. यह मानसिकता और मनस्थिति की बातें हैं जिनकी  गहराई में अवचेतन में रहने वाले बहुत से फ़ेक्टर्स का रोल रहता है, मनुष्य जिस वातावरण में जिया और जी रहा है उसके प्रभाव होते हैं, वांछाओं और आवश्यकताओं को पूरा करने की जद्दोजहद होती है, हार्मोन्स का रोल होता है, शारीरिक स्वास्थ्य का असर होता है, क्रिया-प्रतिक्रियाएँ होती है, सर्वाइवल इंस्टिंक्ट्स होती है, ईगो और कोम्पलेक्सेज की भूमिका रहती है....कई एक अनजाने कारण भी होते हैं.


मैं बस तड़फ कर रह जाती हूँ...

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▪️"देखो मुझे एडवेंचर्स पसंद है, मुझे ज़िंदगी में गति और प्रवाह चाहिए और जिसके साथ मैं एक छत के नीचे रहती हूँ वह जड़ है बेजान पत्थर सा....बस काम पर चले जाना और घर आकर बैठ जाना. कभी मोबाइल पर गेम्स खेलना, तो कभी न्यूज़ चैनल्स पर चलने वाले शोर भरे राजनीतिक डिबेट सुनना....मैं बस तड़फ कर रह जाती हूँ." विदुषी कहती.


▪️कभी कभी ऐसा भी कहती विदुषी, "मैं फ़िज़िकल फ़िटनेस की क़ायल हूँ. योग, एक्सरसाइज, एरोबिक्स करके देखो कितना फिट रखती हूँ अपने आप को और वो...जैसे कोई परवाह ही नहीं. देखी है बीयर बेली..कड़ी कड़ी...कमीज के बटन तक बंद नहीं हो पाते. कैसे बर्दाश्त करूँ....मैं बस तड़फ कर रह जाती हूँ."


▪️दुख सा मानो झलक जाता  था विदुषी की आँखों में जब वह कहती, "मुझे शराब की बू बिलकुल नहीं सुहाती और ये बंदा है कि हर शाम अकेला ही बोतल लेकर बैठ जाता है और टीवी देखते देखते तीन चार पेग लगा लेता है इस से बेपरवाह होकर के  कि कोई और भी है घर में....और उस बदबू भरी साँसों के साथ जब बिस्तर में मेरे क़रीब आता है....मैं बस तड़फ कर रह जाती हूँ."


▪️दोनों की मानसिकता पर विदुषी का कहना था, "मैं बहुत ही कोमल मन और संवेदनशील हूँ हाईली सेंसिटिव. मेरे लिए यह लाइन बिलकुल सही लागू होती है- Fragile, Handle with care और जनाबे आली बिलकुल भावना शून्य. बात बात पर तंज और जज़्बात पर चोट पहुँचना, एक ही बात को बार बार रिपीट कर कर के. जार जार रोती हूँ मैं आँखों से आँसू झरने लगते है....मैं बस तड़फ कर रह जाती हूँ."


◾️और उसकी असंवेदनशीलता के कई वाक़ये बता देती थी. जैसे :


# पहला बच्चा हुआ तो देखने नहीं आया और ना ही अस्पताल से घर लिवा लेने. 


# दादाजी जिन्होंने उसे पाला पोसा पढ़ाया लिखाया, जब चल बसे और देर रात खबर आई तो तुरत अस्पताल नहीं गया क्योंकि नींद लग रही थी....और तो और सुबह हुई तो डेड बॉडी लेने भी किसी और को भेज दिया. 


# मेरी माँ ने जब दुनिया से विदा ली, खबर आई तो मुझे तुरत नेहर नहीं जाने दिया, मुझे दिल पर पत्थर रखना पड़ा. 


# रेल यात्रा में समान उठाना, ऊपर नीचे करना ...सब मुझे ही करना होता है. लाटसाहब बस हिदायतें देते रहते हैं जैसे मैं कोई मुलाजिम हूँ या ज़रख़रीद ग़ुलाम. मेरे बेक पैन की परवाह तक नहीं. 


# अरे एक दफ़ा तो किसी बदमाश ने ट्रेन सफ़र के दौरान मुझे inappropriately टच कर लिया, मैने उसे बताया तो दुबक कर बैठ लिया, डर के मारे कि कहूँ वह बदमाश पिटाई ना कर दे....कहने लगा-देखो कोई नहीं बोल रहा, सब यही सोचते हैं कि जो हुआ सो हुआ क्यों बात बढ़ाई जाय. काहे गुंडे एलिमेंट को मुँह लगाया जाय.


हर वाक़या बताने में आगे पीछे बड़े बड़े सेण्टेंसेज होते मगर आख़री यही होता-"जब भी इसको सोचती हूँ.मैं बस तड़फ कर रह जाती हूँ."


▪️खुल कर चर्चा करती थी विदुषी. पहले तो लगता था जी हल्का करना होगा या कोई सलाह लेनी होगी. 


बातों बातों में सलाह दी जाती -धैर्य रखने, साथी से खुल कर बात करने, अपने व्यवहार में कोई उन्नीस-इक्कीस हो तो स्वनिरीक्षण करके सुधार करने, कुछ बातों को जस्ट इग्नोर करने, रिश्तों में कुछ भी सम्पूर्ण (perfect) नहीं होता बस प्रयाप्त (enough) हो तो बात बन जाए, अरे १०० में से ७५ हो तो डिस्टिंक्शन-साठ हो तो फर्स्ट डिवीजन-पैंतालीस में सेकंड डिवीज़न-तैंतीस में थर्ड डिवीज़न से पास-हाँ तैतीस से कम हो तो फेल --तेरे तो गुड सेकण्ड डिवीज़न वाला केस है-काम करो ईमानदारी से इस पर-क्रमशः फर्स्टडिवीज़न और फिर डिस्टिंक्शन...सुना सब जाता मगर शिद्दत से अमल कभी नहीं...क्रीबिंग मगर जारी रहती. लगता था अटेंशन और सहानुभूति पाकर घनिष्ठता(intimacy) पाना उदेश्य रहता था. 


हाँ, हूँ करती रहती थी, कभी कभी तो प्रोमिजेज भी होती कि सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रयास करूँगी, और घूम फिर कर वही डायलॉग : "मैं बस तड़फ कर रह जाती है."


▪️बातें  व्यवहार से परे जाकर यौन संबंधों में साथी की परफ़ॉर्मेंस और स्वयं के पीएमएस जनित व्यवहार पर आ कर थमने लग जाती थी. इस विषय पर फिर कभी. हाँ वहाँ भी जुड़ जाता "मैं बस तड़फ कर रह जाती हूँ."


▪️विदुषी (स्त्री) की प्रतिक्रियाएँ जैसे अपने पति के लिए प्रकट हुई वैसी ही किसी विदुष(पुरुष) की अपनी पत्नी के लिए हो सकती है. जेंडर न्यूट्रल होकर इस फीडबेक को लिया जाय.

विषय बस आपस में कम्पेटिबिलिटी ना होने पर निभाने के प्रयास, सविवेक सुकून के लिए निजात पा लेना, अपनी  स्वतंत्र राह अपना लेना, मैनिपुलेशन्स करते हुए मोमबती को दोनों सिरों से जलाना/केक ख़ाना भी और घर भी ले जाना आदि विकल्पों पर विचार करने का है.


🔺पढ़ने वालों के रेडी रेफ़्रेंस के लिए विदुषी सीरीज़ के अब तक हुए पोस्ट्स की लिंक्स कमेंट्स सेक्शन में दे रहा हूँ.

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