Friday 16 June 2023

देना और लेना : विजया

 देना और लेना-Give and Take

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देने और लेने दोनों का संतुलन ही सामान्य जीवन का उचित क्रम है । "वन वे ट्रैफिक है दोस्ती और प्रेम" "बस देते ही रहना चाहिए", "कभी भी परवाह ना करें कि अगला मुझे क्या देता है-आप बस देते जाइए", "अपेक्षा काहे की" इत्यादि...अक्सर जो ऐसी बातें करते हैं वे सब से बड़े और आदतन भी Takers याने लेने वाले होते हैं और ऐसे एक तरफ़ा ज्ञान के द्वारा Givers का शिकार करते हैं । आज एक कहानी पढ़ रही थी, अच्छी लगी, पटल पर शेयर कर रही हूँ ।


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किसी शहर में एक भिखारी रहता था। वह ट्रेन में लोगों से भीख मांगा करता था। एक दिन जब वो भीख मांग रहा था, तो उसे एक सेठजी नजर आए। उसे लगा कि सेठजी उसे ज्यादा पैसे देंगे। ये सोचकर वो सेठ के पास पहुंचा। सेठ से उसने भीख मांगी। सेठ ने उससे कहा कि- अगर मैं तुम्हें पैसे दूंगा तो बदले में तुम मुझे क्या दोगे।


सेठ की बात सुनकर भिखारी ने कहा कि- मैं आपको क्या दे सकता हूं? सेठ ने कहा- अगर तुम मुझे कुछ नहीं दे सकते तो मैं तुम्हें पैसे क्यों दूं? भिखारी जब अगले स्टेशन पर उतरा तो उसे सेठ की बात याद आई। तभी उसकी नजर सड़क किनारे उग रहे फूलों पर पड़ी। भिखारी ने वो फूल तोड़ लिए।


अब जो भी भिखारी को पैसे देता, बदले में वो उसे एक फूल देता। कुछ दिनों बाद ट्रेन में भिखारी को वही सेठजी नजर आए। भिखारी ने उनके पास जाकर कहा- आप मुझे पैसे दीजिए, बदले में मैं भी आपको कुछ दूंगा। सेठ ने जब पैसे दिए तो बदले में भिखारी ने उन्हें फूल दिया। ये देखकर सेठजी खुश हुए।

सेठ ने भिखारी से कहा कि- अब तुम भिखारी नहीं बल्कि एक व्यापारी बन गए हो। सेठ की बात भिखारी को समझ आ गई। 


इस घटना के कुछ साल बाद जब वो सेठजी एक ट्रेन में सफर कर रहे थे, उनके सामने एक आदमी आकर बैठ गया। उसने सेठ से कहा कि- आज आपकी और मेरी तीसरी मुलाकात है।

सेठ ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा और कहा कि- नहीं हम आज पहली बार मिल रहे हैं। उस आदमी ने कहा कि- आपने मुझे पहचाना नही। मैं वही भिखारी हूं, जो पैसे के बदले लोगों को फूल देता था। जब आपने कहा कि तुम भिखारी नहीं बल्कि एक व्यापारी हो, तभी से मैंने भीख मांगना छोड़ दिया और फूलों को व्यापार करने लगा।


आज मेरा फूलों का अच्छा-खासा व्यापार है। आपकी एक सोच ने मेरी जिंदगी बदल दी, नहीं तो मैं आज भी ट्रेनों में भीख रहा होता। उस आदमी की बात सुनकर सेठ ने कहा कि- तुम्हारी सफलता का कारण मैं नहीं बल्कि तुम खुद हो। तुमने अपनी सोच को बड़ा किया और असंभव को संभव कर दिखाया।


कहानी का मोरल :

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जिंदगी में कुछ भी असंभव नहीं है, जरूरत है तो बस अपनी सोच का दायरा बढ़ाने की। जिस दिन आपने अपनी सोच को बड़ा कर लिया, उस दिन आपको दुनिया की हर वो चीज मिल जाएगी, जो आप चाहते हैं। बड़े सोच में देने और लेने के क्रम को संतुलित किया जाता है ना कि एक तरफा "लेना" या "देना" चलाया जाता है ।

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