Sunday 19 February 2023

बदल भी न सका था : आकृति जी

 बदल भी न सका था 

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लहर से धोखा किया 

दिशा हीन पवन ने 

बदल भी न सका था 

मानचित्र द्वीप का...


जा जाने क्यों 

दूर जा बसा कोई जंगल में 

बदल भी न सका था 

चलन शहर-बस्ती का...


नदी बहती रही पहले सी ही 

नैय्या भी रही वो ही 

बदल भी न सका था 

मानस डूबने वालों का...


बिम्ब और दर्पण रहे वो ही 

दृष्टि भी रही वैसी 

बदल भी न सका था 

आकार अपने चेहरे का....


ना मिल पायी मंज़िल 

जिया केवल चस्का यात्राओं का 

बदल भी न सका था 

स्वरूप अपने पथ का ...

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