बदल भी न सका था
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लहर से धोखा किया
दिशा हीन पवन ने
बदल भी न सका था
मानचित्र द्वीप का...
जा जाने क्यों
दूर जा बसा कोई जंगल में
बदल भी न सका था
चलन शहर-बस्ती का...
नदी बहती रही पहले सी ही
नैय्या भी रही वो ही
बदल भी न सका था
मानस डूबने वालों का...
बिम्ब और दर्पण रहे वो ही
दृष्टि भी रही वैसी
बदल भी न सका था
आकार अपने चेहरे का....
ना मिल पायी मंज़िल
जिया केवल चस्का यात्राओं का
बदल भी न सका था
स्वरूप अपने पथ का ...
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