Sunday 18 December 2022

अहंकार एक ऊर्जा भी

 


अहंकार एक ऊर्जा भी 

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"अहंकार", "अहम" "मैं", "अना" "Ego-Egoitism-Egoism-Egocentric" "स्वयम्" आदि शब्दों को लेकर दर्शन, मनोविज्ञान, आध्यात्म,धर्म शास्त्र  रोज़मर्रा के व्यवहार आदि में भयंकर और अंतहीन विश्लेषण, संश्लेषण, विमर्श, विवेचन, बाबा लोगों के भाषण आदि है. इन बड़ी बड़ी बातों पर फिर कभी. आज के ताज़ा ज़मीनी ऑब्ज़र्वेशन पर बात हो जाए.


ज्ञान गुफ़्ता अपनी जगह, यह अहंकार अगर आटे में नमक जितना ना हो तो बहुतों के जीने में कोई रवानी ना रहे. आज सुबह का ही वाक़या है. यहाँ बंगाल में दुर्गा पूजा बहुत धूमधाम से मनायी जाती है सभी आम और ख़ास द्वारा. मगर एक आह्लाद जो अति साधारण और मध्यम आय वाले तबके में दिखायी देता है वह मेरे इस नोट का विषय है.

एक पोश कहलाने वाले इलाक़े में रहता हूँ...और इसी इलाक़े में एक मंत्री जी अपनी क्लब के तहत यहाँ की सबसे प्रसिद्ध पूजाओं में एक का आयोजन हर वर्ष करते हैं...दर्शकों की भीड़ भी सबसे ज़्यादा होती है. सब रास्ते क़रीब क़रीब बंद...गाड़ियाँ रेंगती सी. 

हाँ तो आज सुबह मैं ने क़रीब दो किलोमीटर का पैदल राउंड लिया और तटस्थ ऑब्ज़र्वेशन किया जो शेयर कर रहा हूँ.


१. दो तीन लड़कियाँ, ब्रांडेड ड्रेसेज़ की सस्ती अनुकृतियाँ पहने जिस ठसक से चल रही थी उसने मुझे प्रभावित किया. थोड़ी देर के लिए ही सही एक अहंकार उनमें फुर्ती और जोश ला रहा था...भ्रम कहिए लेकिन सकारात्मक और रचनात्मक जो उन्हें सहज ही उनके होने का एहसास दिला रहा था. उनका छोटी छोटी खाने पीने की चीजीं ख़रीदना, अदा के साथ कोल्ड ड्रिंक पीना...अपने को कुछ अलग सा समझना उत्साह दे रहा था.


२. एक सामान्य परिवार ने किराए की SUV ले रखी थी, पूजा पंडालों को विज़िट करने के लिए. एक मालिक की तरह दरवाज़ा खोलना, या दरवाज़ा पकड़ कर खड़ा होना...गाड़ी में बैठना बिलकुल आभिजात्य का एहसास...एक अहंकार की पुट लिए...क्या बुरा है इसमें...वही तो उन्हें कुछ क्षण ऐसे ज़िला कर पर्याप्त होने का एहसास दिला रहे थे.


३. एक electrician  किसी काम से आया. फ़ेस्टिव मूड में था. बात चीत में उसके काम के जानकार होने का ग़ुरूर ज़ाहिर हो रहा था...अच्छा ही है ना उसके सेल्फ़ कॉन्फ़िडेन्स को बूस्ट कर रहा था.


आसपास में बहुत से उदाहरण इन छोटी छोटी EGO या अहंकार के मिलेंगे और उसमें हम अगर तटस्थ होकर देखें तो ऊर्जा दिखेगी...एक जज़्बा दिखेगा जो मानवीय है. 


यही अहंकार हमें ऊँचा सोचने की तरफ़ प्रशस्त करता है.


कभी कभी सोचता हूँ ये अहंकारी बाबा लोग किस अहंकार/मैं  के पीछे लट्ठ लेकर पड़े रहते हैं, लम्बी लम्बी शाब्दिक तक़रीरें करते रहते हैं.


पता नहीं क्यों पाखंड भरा "मो सम कौन कुटिल खल कामी" का गान मुझे गंदा वाला अहंकार लगता है.


आज के लिए बस.😊

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