विदुषी के विनिमय की कहानियां
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और फिर.....
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विदुषी और मुनीश शायद एक ही इंस्टिट्यूट में पढ़ते थे. दोनों अलग अलग जगह सेटल हो गए थे. पढ़ने के दौरान interactions होते थे या नहीं लेकिन सोसल मीडिया पर अंतराल के बाद मिले, "साथ पढ़े" वाली फ़ैंटसी को बल मिला तब इंस्टी के समय की ढेरों बातें होने लगी. विदुषी ने नया नया कविताएँ लिखना शुरू किया था, मुनीश भी कभी कभार लिख लेता था, हालाँकि दोनों ही इंजीनियरिंग बेक ग्राउण्ड से थे.
विदुषी होम मेकर, लेकिन टाइम मेनेजमेंट और मल्टीटास्किंग की माहिर सो बहुत समय रहता था उसके पास, शौहर अपने दफ़्तर में मशगूल, और मैडम जी ऑनलाइन.
शादी एक ऐसा रिश्ता है जिसमें कोई दुर्लभ पार्ट्नर्स ही होते हैं जो सौ टका कंपेटिबल कहे जा सकते हैं, फ़र्क़ होता ही है दो व्यक्तियों और उनके व्यक्तित्वों में. आपसी समझ, व्यवहार और सहज प्रेम से पति पत्नी इस मानव निर्मित विवाह संस्था का सफल संचालन कर सकते हैं यह एक प्रेक्टिकल बात है और मनोवैज्ञानिकों ने भी इसे एंडोर्स किया है. हमारी नायिका विदुषी के दिमाग़ में यह बात कूट कूट कर भरी थी कि उसका शादी का साथी कंपेटिबल नहीं, हालाँकि थोड़े से फ़ैक्ट्स थे ज़्यादा फ़िक्शन. मुनीश किसी कम्पनी में मार्केटिंग मेनेजर था. वहाँ भी दबंग बीबी और शालीन शौहर के चलते थोड़ा कम्पैटिबिलिटी का इस्यू रहा होगा, बाक़ी विदुषी ने अपनी स्मार्ट्नेस और वाकचातुर्य से कई गुना करवा दिया था.
मुनीश के घर से दफ़्तर तक का रास्ता कार द्वारा कोई चालीस मिनट का था. उस समय का सदुपयोग स्पाउसेज़ की ग़ैर हाज़िरी में दोनों दिली बातों के लिए इस्तेमाल करते. विदुषी अपनी कविताएँ सुनाती, सुनाए ही जाती और बेचारा मुनीश शुरू में तो रुचि लेता मगर धीरे धीरे बोरियत को मज़ेदार रोमांस के विनिमय के साथ जैसे तैसे झेल लेता. हाँ उसकी "बरनी" पर लिखी कविता को याद दिला दिला कर विदुषी मुनीश को उसका भी कवि होना याद दिलाती. whatsapp नहीं आया था तब तक दफ़्तर के दौरान दुपहरिया में दोनों की Gtalk और Hangout पर चैट होती, बायोलोजी और सायकोलोजी दोनों के इर्दगिर्द बात चीत का पेंडुलम हिलता डुलता रहता.
दोनों के रूबरू मिलन की तड़फ भी बढ़ने लगी....तय हुआ कि बीच के एक रेल्वे स्टेशन पर दोनों मिलेंगे. विदुषी और मुनीश ने सापेक्ष गति वाले गणित के फ़ोरमूले के अनुसार दोनों दिशा से आने वाली ट्रेन्स का चुनाव किया और नियत समय पर दोनों ही उस स्टेशन पर मिल गए.
विदुषी बोल्ड थी और मुनीश भीरु क़िस्म का इंसान. विदुषी ने उसमें जोश और हिम्मत इंजेक्ट कर यह प्रोग्राम बनाया था लेकिन दिल और दीमाग से मुनीश कंफ्यूजन में था. बुद्धि जीवियों वाले प्यार में सेक्स के मक़ाम तक पहुँचने से पहले बड़ी डायलोग बाज़ी होती है, बहुत लम्बे लम्बे सैद्धांतिक भाषण, आदर्शवाद के बघार और इश्किया खसुर पुसुर होती है. दोनों ही प्रानी अगर शादीशुदा तो कई 'इफ़्स और बट्स' मध्यमवर्गीय मानसिकता वाले लोगों के लिए ऐसे ताल्लुकात में आड़े आते हैं और कभी इश्क़ की गाड़ी के टायर फ़्लैट हो जाते हैं तो कभी बेटरी डिस्चार्ज तो कभी इंजन का ब्रेकडाउन.
विदुषी ने कहा चलो सिटी में चलते हैं कुछ देर कहीं कॉफ़ी पर बैठते हैं और फिर......
हैंड्स होल्ड हुए, अधूरे हग भी सार्वजनिक स्थल पर हुए, विदुषी की पहल पर हल्का सा 'किस' भी.....शायद तीन चाय और दो कोक्स हो गयी सेंडविचेज के साथ. "तुम दुनिया से अलग" " तुम्हारी बात ही कुछ और"....हमारा मिलना दैविक संयोग....हमारी दोस्ती हमारे अपने स्पाउसेज़ और किड्स के भले के लिए ही कंट्रिब्यूट करेगी...इत्यादि बातें पुनरावृति के साथ होती रही. विदुषी जो चाह रही थी उसके लिए मुनीश हिम्मत नहीं कर पा रहा था, उसकी बरनी में मिक्स्ड आचार जो था याने तरह तरह के विचार. शायद कोई दो घंटे वहीं प्लेटफ़ोरम, वेटिंग रूम, यह कोना-वह कोना में गुजर गए. तय हुआ अगली मुलाक़ात में "और फिर" के बाद वाले के लिए मेंटली तैय्यार होएँगे दोनों आपसी बात के ज़रिए अण्डरस्टेण्डिंग डेवलप करके.
फिर एक दूजे को हग करके, 'आई लव यू' के मोहब्बती नारे के साथ प्रेम युगल ने जुदा हो कर अपनी अपनी ट्रेन्स पकड़ ली थी. विदुषी पूरब की जानिब और मुनीश पश्चिम की तरफ़.
घर पहुँच कर दोनों अपने अपने लाइफ़ पार्टनर्स के साथ थोड़ा और ज़्यादा प्रेम दर्शाते शाम के स्नेक्स खा रहे थे...हाँ विदुषी मन ही मन उस समय अधूरी मुलाक़ात को पूरा करने के प्लान सोच रही थी और मुनीश अपने कॉन्फ़िडेन्स लेवल को बूस्ट करने कोई ओशो के वक्तव्य को सोच रहा था, क्योंकि उन दिनों उसे ओशो जी का नया नया शौक़ चढ़ा था. विदुषी भी फेशन वाले आध्यात्म की ग्लैमर को अपने मुआफ़िक़ पा रही थी.
(यह लघु कथा सीरीज़ जारी है)
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