Wednesday 24 August 2022

तजुर्बे...

तजुर्बे...

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अस्सी के दशक में जब इंटर्नेट और सोसल मीडिया का चलन नहीं  था, मैं एक पोस्टर अपनी Management Classes और Work Shops में अक्सर टंगाया करता था (तस्वीर दे रहा हूँ) और यह जुमला, जिसे Physicist Emil Lenz के Lenz's Law से जोड़ कर कहते थे,  मेरे लेक्चर्ज़ में किसी ना किसी हवाले से  इस्तेमाल हो ही जाता था :


"Experience is what you get when you don't get what you wanted." 

(तजुर्बा/अनुभव वह शै है जो तब हासिल होता है जब वो नहीं मिलता जिसकी ख्वाहिश रही होती है 😊). 


वाक़ई यह तजुर्बे का सच है. सब कुछ लुटा के कुछ लोग होश में आ जाते हैं और चीजों को सही कर लेते हैं...और कुछ repeat performance देते हुए खुद को साबित करने की नाकाम कोशिशें करते रहते हैं.


कुछ तजुर्बे illusions याने इख़्तिलाले हवास याने मतिभ्रम की मानिंद होते हैं. हम सोचते जाते हैं और महसूस भी करते हैं सब सही हो रहा है और उसके लुत्फ़ में दीवाने हुए जाते हैं जब कि हम खुद ही अपना नुक़सान किए चले जाते हैं. एक कुत्ता जैसे सूखी हड्डियों को मुँह में भर लेता है....चबाने के दौरान उसके तालु और मसूढ़ों से खून का रिसाव होता है..वह अपने ही खून का ज़ायक़ा लिए जाता है, बड़ा खुश होता है और लगातार ज़ख़्मी होता जाता है...कभी कभी तो ऐसा ज़ख़्म जानलेवा भी हो जाता है.


जैसा कि मैने एक जगह कहा है, हम तजुर्बों से सीख लेकर आगे के लिए सही कर सकते हैं मगर उसके लिए होशमंदी का होना ज़रूरी है. हमारी नाकामियाँ हमारी कामयाबी के महल के लिए 

खम्भों (posts and pillars) का काम कर सकती हैं. failures can be great feedbacks for designing future course of action. नाकामियाँ कामयाबी की जानिब पहुँचने के लिए सीढ़ी का काम कर सकती है, बस हमारा नज़रिया कुछ ऐसा ही हो.


अच्छे तजुर्बे ताज़गी और ताक़त देते हैं. भरपूर जीने का हौसला देते हैं. हम अपने इर्दगिर्द ख़ुशियाँ बिखेर सकते हैं. ज़रूरतमंदों से अपने इल्म को बाँट सकते हैं और उन्हें भी कामयाबी की तरफ़ आगे बढ़ने में मदद कर सकते हैं.


कुछ रूहानी तजुर्बे भी होते हैं जो गूँगे के गुड़ जैसे होते हैं. उनका बस एहसास होता है, उनका इजहार अल्फ़ाज़ में नहीं किया जा सकता...बस वाइब्ज़ में ही मुमकिन होता है. उनके पहुँचने के लिए माहौल और मौजूदगी के इलावा लेने वाले के नुक़्ता ए नज़र की भी बात भी अहम होती है.


कुछ तजुर्बे फ़क़त ख़याली पुलाव होते हैं जो दीमाग की हांडी में मुसल्सल पकते रहते हैं और चालाक लोग अपने जैसों को ही परोसते रहते हैं (यह chain बदस्तूर जारी रहती है) या मासूमों/बेवक़ूफ़ों को शिकार बनाते रहते हैं. आजकल इसे Marketing में शुमार करते हैं....इस तकनीक का इस्तेमाल आपको इन दिनों ज़िंदगी के हर मैदान में दिखायी देगा.


दिल तो करता है कि अपने सारे तजुर्बों को सिलसिलेवार या रैंडम यहाँ शेयर करूँ मगर रुक जाता हूँ क्योंकि अभी जाँ बाक़ी है.😊







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