Tuesday, 8 February 2022

चमक...

 

चमक,,,

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उम्मीदों के शहर में 

बजाते रहे मायूसी का इकतारा 

क्यूँ बिखेरते रहे उदासियाँ 

रेत के ज़र्रों से कहीं ज़ियादह,,,


बरसी थी नेमतें

ना हुए शादमान तुम 

क्या होगा कोई गुनाह 

इस गुनाह से कहीं ज़ियादह,,,


शाज़ोनादिर है 

मिलना उन आँखों का 

होती है जिनमें चमक 

सितारों से कहीं ज़ियादह,,,


रहमत है रब की 

के समाया है इनमें नूरे इलाही 

खिली खिली है ये आँखें 

बहारों से कहीं ज़ियादह,,,

             ~॰~

मायूसी=निराशा, हताशा, उदासी 

ज़ियादह=अधिक(ज़ियादह मूलतः अरबी शब्द है) 

ज़र्रा=कण, नेमतें=प्रभु के उपहार 

शादमान=हर्षित (शादमान मूलतः फ़ारसी शब्द है)

शाज़ोनादिर=दुर्लभ/rare,

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