कहे बिन...
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बहुत सहा
अब सहा न जाता
कहे बिन
अब रहा न जाता...
पौर पौर में
दर्द समाया
मन पर भी
पीड़ा का साया
नदिया मैली
अब बहा न जाता
कहे बिन
अब रहा न जाता...
जोड़े शाश्वत
दिलासा झूठी
वादे सारे
सब क़समें झूठी
जर्जर चादर
अब तहा न जाता
कहे बिन
अब रहा न जाता...
आँसूँ कब के
शुष्क हुए हैं
लब मेरे भी
खुश्क हुए हैं
राख हुई
अब दहा न जाता
कहे बिन
अब रहा न जाता...
देह आत्मा
सब टूट गए हैं
वेदन सोते
फूट गए है
कच्चा धागा
अब गहा न जाता
कहे बिन
अब रहा न जाता...
---विजया-2021
(साहेब का शुक्रिया...मेरी हर ख़ुशी पर नाम है जिसका😊
किसी और के मनोभाव जी लेने और लिखने में साहेब की महारत का लाभ मिला है मुझे इस रचना के लिए गाइडेन्स के रूप में)
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