Friday 12 February 2021

पात्र...

 पात्र...

####

फूलों का नही

शूलों का ही था 

पात्र मैं,

स्वीकार हुए 

मुझे तभी सहर्ष 

उपहार नुकीले 

काँटों के,


रखी नहीं थी मैं ने 

अपेक्षा कभी,

कि कोई मुझे 

गुलाब दे,

नयनों का 

खारा पानी 

हुआ था मंज़ूर मुझ को 

ना थी तलब 

कोई मुझे 

अपने दिल की 

शराब दे...

No comments:

Post a Comment