Wednesday, 7 August 2019

फ़र्क़ मर्द औरत का - खरी खरी : विजया

स्वांत: सुखाय
========

फ़र्क़ मर्द औरत का : खरी खरी
*************************
(सविता गुप्ताजी की कविता पर चिंतन और विमर्श से उपजी एक सहज रचना...सविताजी की कविता यहीं ग्रुप में  अन्यत्र शेयर की है मैं ने--https://www.facebook.com/groups/1564062830539926/permalink/2478678039078396/)

+++++++++++
सवाल हैं ये
पीछली पीढ़ी की
जीवन शैली के
किंतु सटीक है
कल के लिए भी
ज्वलंत है आज के लिए भी....

बड़ी विचित्र है यात्रा
इन सवालों की
स्वयं से पूछा जाय तो
हो सकती है
अनुभूति इनकी व्यर्थता की,
पूछा जाय अगर औरों से तो
द्योतक है हमारे ही
निर्बल स्वविश्वास के
या है यह कोई दुस्साहस भरा षड्यंत्र
स्वयं की कमज़ोरियों को ढाँपने हेतु
बहाने खोजने का....

सदियों से चली आयी
परिभाषाओं को
आज हम ही करने लगे हैं इस्तेमाल
अपने स्वार्थ पोषण हेतु....

माँग भरने की माँग
उनसे अधिक होती है हमारी
वैसे आजकल ये सब
बन कर रह गए हैं
महज़ फ़ैशन स्टेट्मेंट की महामारी.....

नर नारी मैत्री आज की नहीं
आदि काल ही हक़ीक़त है
द्रौपदी और कृष्ण की मित्रता
प्रतीक है
स्वस्थ संबंधों और परस्परता की,
है यदि कोई रिश्ता
परे वैचारिक संकीर्णता और द्वेष से
स्वीकार्य है अंतर्मन से जो स्वयं को
स्वीकारेंगे उसे कालांतर में
होंगे जो भी हृदयत: अपने,
शेष दुनिया के लिए होगा बस समझना
"क्या कहेंगे लोग
सब से बड़ा यह रोग...."

सौंदर्य है ईश्वर प्रदत्त उपहार
सजना संवरना रख रखाव भी है
ईश स्तुति तुल्य
नर और नारी दोनों के लिए,
होना अन्नपूर्णा मौलिक स्वभाव है स्त्री का
होना चाहिए हमें गर्व उस पर,
साझा शब्द होता है लागू दोनो पर
जो भी साझेदार करता नहीं सहयोग
वज़न उठाने में
कराना होता है हमें ही उसको
एहसास उसका,
नहीं बदल सकता
हमारा प्यार और तकरार यदि
फितरत उसकी
बदल सकते हैं ससम्मान
हम अपनी ही सोचों को
करते हुए पूर्ण सुरक्षा अपने स्वाभिमान की,
नहीं आते हैं यथेष्ट परिणाम तब भी
तो लेने होते हैं उचित कड़े निर्णय
करके सक्षम स्वयं को.....

सदियों का अनूकूलन और कुंठायें
हावी है हम स्त्रियों के दिलों और दीमागों पर
वजह यही तो है स्त्री के स्त्री के प्रति
प्रतिक्रियात्मक दुर्भाव की
जिसे देता रहा है है हवा
पुरुष प्रधान समाज
नाना प्रकार के निर्वचनों और प्रतिपादन से,
होशमंदी स्पष्टता और स्वीकार्यता
दिला सकती है निजात हमें
जलन और एहसासे कमतरी से,
कर सकती है दूर सभी छद्म विकारों को
जो नहीं है 'एकाधिकार' 🤣केवल स्त्रियों का
क्या नहीं पाई जाती ये सारी असंगतियाँ
पुरुष व्यवहार में भी ?

तलाशते हैं अवसर संसर्ग के
पुरुष और स्त्रियाँ दोनो ही,
जैविक सत्य भी जुड़ा है दोनों से एक सा
तोहमत लगा कर केवल मर्दों पर
करना साबित ख़ुद को दूध का धुला
है नितांत निराधार और असंगत...

स्वयं की नकारात्मक सोच
सतही संवेदनाएं
बनती है सबब स्वयं की घुटन का,
पीड़िता और शहीद दिखाने की फ़ितरत
वजह है असमंजस और छटपटाहट की
सम्भव है मुक्ति सर्वथा
स्वयं और पर की क़ैद से
अपनाएँ यदि स्त्री
रीति नीति समग्र सोचों की....

No comments:

Post a Comment