जीने के बहाने खोजता है,,,
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कभी आधे सच, कभी झूठ सोचता है
एक इँसां आज जीने के बहाने खोजता है,,,
तारीकी का है आलम, और वो डरा डरा सा
घुटन से परीशां,ग़म से भरा भरा सा
तपिश अगन की में,ख़ुद को ही झोंकता है
एक इँसां आज जीने के बहाने खोजता है,,,
पीकर अश्क़ अपने बौझिल हुआ है जीना
शाम या सवेरा बस लहू जिगर का पीना
ख़ुद की ही गाँठों को बाँधता खोलता है
एक इँसां आज जीने के बहाने खोजता है,,,
खोले किवाड़ दिल के ,दुश्मन बसा लिये हैं
हर जुज़्बे ज़िन्दगी पर पहरे बिठा दिए हैं
अमृत भरे जीवन में वो ज़हर घोलता है
एक इँसां आज जीने के बहाने खोजता है,,,
टीसते हैं ज़ख़्म सारे, दिये थे जो अपनों ने
एहसास पिस रहे है, संजोये थे जो सपनों ने
जग से हुआ है गूँगा ख़ुद ही से बोलता है
एक इँसां आज जीने के बहाने खोजता है,,,
भटक रहा सहरा में पानी तलाशता वो
अपने ही पैरहन पर कीचड़ उछालता वो
टूटी तराज़ूओं में जज़्बात तोलता है
एक इँसां आज जीने के बहाने खोजता है,,,
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