Wednesday 11 April 2018

सिरहन छुअन की : विजया


सिरहन छुअन की.....
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खिलखिलाहट
झील की कुछ
जता रही है
शोख मेरी कुछ
खता रही है...

ओढ़ कर चादर
मदमस्त लहरों की
दास्तानें चन्द पुरानी
बता रही है....

छेड़ कर राग
जाने पहचाने
ज़ालिम
मेरे दिल को
सता रही है....

रोशनी आँखों की
कर रही है चुगली
सिरहन छुअन की
अलबत्ता रही है.....

झुक जाती हूँ मैं
सज़दे में तेरे,
नमाजे इश्क़ यूँ
अता रही है....


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