Sunday 22 September 2019

निमंत्रण गहरायी मापने के लिए,,,(दीवानी सीरीज़)



निमन्त्रण : गहरायी मापने के लिए,,,(दीवानी सीरीज़)
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बहुत चाहती थी मुझे... प्रेम और आदर दोनो ही बेइंतहा...लेकिन
Egoist No. 1....मैं राजा हूँ तो बस उसका बनाया ही 😊नहीं तो कटु आलोचना....हमारे साम्राज्य की Queen The Empress जो थी वो, यद्यपि उसे Princess (राजकुमारी) कहलाना ज़्यादा पसंद था. कई रंग थे दीवानी के, देखिए ना उस दिन कुछ मनचाहा ना हुआ और हमें 'व्यर्थ' साबित कर दिया. रूपकों के प्रयोग में महारत !

व्यर्थ : बात दीवानी की
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समुद्र हुए तो क्या हुआ
प्यास किसी की भी तो
बुझाई नहीं,
समेट कर ख़ुद में
बेहद खारापन रखना,
बेतरह फैल कर
विशाल होना,
ऊँह !
अक्खा जीवन तो व्यर्थ,,,

( Adapt of a poem by Vidya Bhandariji  , with thanks and regards)

कैफ़ियत मेरी 😊 :
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मैं भी पक्का कलमबाज़ और कलाबाज़.....जता दिया कि मैं व्यर्थ नहीं हूँ.....तहे दिल से वो भी मानती थी, ऊपर वाली कविता exactly किस बात से ट्रिगर होकर घटित हुई उसका फ़िक्र भूलकर मेरे जवाब का लुत्फ़ लीजिए ना.

चले आना,,,
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माना कि मैं खारा हूँ
मगर अक्खी दुनिया से न्यारा हूँ,
जलाकर ख़ुद को
बन जाता हूँ मैं ही बादल
घूमता हूँ फेरीवाले के मानिंद
देने को पानी
सींचने खेतों को
बुझाने प्यास प्राणियों की
करने शीतल तप्त धरा को,,,

कहाँ हूँ मैं विशाल
समाया हूँ मैं तो एक बूँद में,
व्यर्थता और उपादेयता
हुआ करती है ना सापेक्ष
आँखों देखी भी
होती नहीं निरपेक्ष
निमंत्रण है चले आना
मापने मेरी गहरायी को,,,

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