Monday, 10 June 2019

स्वतंत्रता,,,,,,



स्वतंत्रता,,,,,,
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कंपायमान है विचार मेरे
प्रयास में हूँ
पाने को अपनी ही शांति को,
पीता हूँ अपने ही आँसुओं में
घोलकर भय और असमंजस के शब्दों को
किंतु सोचता हूँ ऐसे में और अधिक मैं
स्वतंत्रता को,,,,

देख रहा हूँ चेहरा
एक किशोरी  का
बँधे थे हाथ जिसके,
भयभीत भी थी वह वीर बाला
किसी अजाने से भय से
कहते हैं निरक्षर थी वो मलाला
नहीं जानती थी वो
शाब्दिक परिभाषा स्वतंत्रता की
किंतु वास्तविक स्वतंत्रता ही तो था
उद्देश्य उसका भी,,,,,

संघर्षरत है हर कोई पाने को स्वतंत्रता
बिना समझे अर्थ ,
बिना हुए स्पष्ट
स्वतंत्रता के लिये,,,,

किसलिए हों हम स्वतंत्र....

मनचाहे ढंग से प्रेम करने के लिये ?
मनचाही पूजा और प्रार्थना के लिये ?
बुराई और घृणा से ?
या है क्या इस का आशय
बस समान दिखने से ?

क्या बना कर रख दिया गया है
स्वतंत्रता को
महज़ एक मतिभ्रम ?
या स्वतंत्रता है एक नया नाम
आज की ग़ुलामी का ?
या एक प्रतीक
ग़ैर ज़िम्मेदारी और बेपरवाही का ?

होता है मुझे कभी कभी महसूस
ज़रूरत है देखने और सोचने की इसको
एक नये नज़रिये से,
ज़रूरत है हमें समझने की
करना क्या होगा
पाने को वास्तविक स्वतंत्रता ?
जो करती है मुक्त
बहिरंग से कहीं अधिक अंतरंग को,,,,,

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