Thursday 23 May 2019

कोरे कोरे सफ़ेद सफ़्हे,,,,,

थीम सृजन :
हार और जीत/जाने कहाँ गये वो दिन
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कोरे कोरे सफ़ेद सफ़्हे,,,,
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शुरू किया था जिन दिनों
सफ़रे जिंदगानी मैंने,
सामने थे मेरे बस कोरे काग़ज़,
सफ़ेद सफ़्हे
बिलकुल पाक और अनछुये
हिमाला की बर्फ़ जैसे,,,,

नहीं थे कोई भी निशाँ सियाही के
ना ही थी कोई खरोंच
कलम की चोट की
नहीं थी आड़ी तिरछी लकीरें
कोई कहानी भी नहीं थी
जो दिखती लिखी हुई उन पर,,,,,

सफ़्हा दर सफ़्हा
कर रहा था जैसे इंतज़ार
ख़ुद के इस्तेमाल होने का
सब्र, सुकून, हँसी ख़ुशी
होश और जोश के साथ,
हर सफ़्हा था जगाता हुआ
अरमान मुस्तकबिल के
हर वरक़ देता हुआ हौसले
आज को जी लेने के,,,,

हर सफ़्हा था मस्रूर
पेश क़दमी करता हुआ
अपने पलटे जाने की
सोचता हुआ कि
पहुँचेगा कब ये फ़साना
मंज़िले मक़सूद को,,,,

लिखती गयी मुसल्सल
कहानी मेरी ज़िंदगी की,
भरते गए कोरे सफ़े
रंग औ स्याही से
पाने और खोने की
जागने और सोने की
मिलन और जुदाई की
वफ़ा और बेवफ़ाई की
ख़ुशी और ग़म की
सादगी और पेचो खम की,,,,

हर कोई था किरदार
कहानी का मेरी
जो साथ है मेरे और रहेंगे
वो भी
जो छोड़ गए मुझ को या छोड़ जाएँगे,,,

जानता हूँ लेकिन आज मैं
उठाएँगे लुत्फ़ कौन कौन इसका,
वे जो तैयार हैं
हर हर्फ़ का साथ देने दिलों से,
वे जो माहिर हैं
पढ़ने में अल्फ़ाज़ और जुमलों से आगे
वे जो बेदार हैं
हार और जीत के हर दौर में...
वे जो हाज़िर हैं
क़दम से क़दम मिला कर चलने में ......

सफ़्हा=पृष्ठ/page, मुस्तकबिल=भविष्य, वरक़=पृष्ठ/page, मस्रूर=प्रसन्न/delighted,पेश क़दमी=प्रत्याशा/anticipation,मंज़िले मक़सूद=अंतिम उदेश्य/ultimate aim, जुमला=वाक्य, sentence, बेदार=जागृत/aware

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