Tuesday 14 May 2019

तुम्हारे हाथ का प्याला : विजया



तुम्हारे हाथ का प्याला...
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चाहती हूँ मे
प्रेम पाना पल प्रति पल
चाहती हूँ मैं
नित्य पीना
तुम्हारे हाथ के प्याले से...

देखा है मैं ने
भरे होते हैं हर दम हाथ तुम्हारे
उस प्याले को थामते हुए
उड़ेलते रहते हो लगातार
जिस से प्रेम
मेरे समग्र जीवन में...

सीख लिया है मैं ने
उड़ेलते हो तुम जो भी
भर देना फिर से उसको,
स्वीकारती हूँ
किंतु नहीं खोज पायी
वे शब्द अब तक
जो कह पाये जो भी निहित है
अप्रकट सा
तुम्हारे मन मस्तिष्क में...

जान पाई हूँ मैं
गुम है जो भी,
भर देने उसकी रिक्तता को
चाहिये होता है
एक गंभीर धीर स्थिर हाथ,
हाथ तुम्हारे जैसा
जो पहुँच पाये सदैव
प्यासे होठों तक...

सुनो !
सम्पूर्ण समर्पण
और कुछ भी नहीं
सिवा हमारे परस्पर सहज होने के,
श्रेयस्कर है स्वीकारना
कि हम हैं बहुत कुछ तृप्त
तभी तो हो पाती है अनुभूत
हमारी प्यास हल्की हल्की...

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