शून्य : नीरा
+ + +
शुन्य से प्रारंभ
हर कथा
शून्य पर होता
हर कथान्त
शून्य में ही तो
तका करती
हर सोच
परे कहाँ शून्य से
कोई निर्माण
निराकरण भी वही
निर्वाण भी वही
अंकों में सर्वोपरि
शून्य
फिर क्यूँ ताने कसती
किसी पर ये दुनिया
"रह जाओगे तुम
बस बन कर शून्य."
पूछे जो मुझ से
तो कह दूँ सब को
होता है
सब से सुन्दर
शून्य
ना होता इसका
कोई आकार
ना ही उसका
कोई भिन्न प्रकार
गोल गोल
सूरज सा
चाँद सा
धरती सा
पूर्ण परिपूर्ण
अस्तित्व सा
सत्यम शिवम् सुन्दरम
शून्य
केवल शून्य
शून्य शून्य और शून्य......
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शुन्य से प्रारंभ
हर कथा
शून्य पर होता
हर कथान्त
शून्य में ही तो
तका करती
हर सोच
परे कहाँ शून्य से
कोई निर्माण
निराकरण भी वही
निर्वाण भी वही
अंकों में सर्वोपरि
शून्य
फिर क्यूँ ताने कसती
किसी पर ये दुनिया
"रह जाओगे तुम
बस बन कर शून्य."
पूछे जो मुझ से
तो कह दूँ सब को
होता है
सब से सुन्दर
शून्य
ना होता इसका
कोई आकार
ना ही उसका
कोई भिन्न प्रकार
गोल गोल
सूरज सा
चाँद सा
धरती सा
पूर्ण परिपूर्ण
अस्तित्व सा
सत्यम शिवम् सुन्दरम
शून्य
केवल शून्य
शून्य शून्य और शून्य......
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