Sunday, 31 May 2015

महारास- (1) : विजया

महारास- (1) 
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होना होता घटित 
यदि मौन महारास 
केवल मात्र 
राधा-कृष्ण युगल में 
तो 
क्यों कर करते 
चीर हरण कन्हैय्या
समस्त गोपियों के,
क्यों कर हटता पर्दा 
मध्य आत्मा और परमात्मा के,
क्यों कर होती दृष्टव्य 
छवि राधिका की 
सोलह सहस्र गोपिकाओं में,
क्यों कर दीखते कान्हा 
बनके जोड़ीदार 
हर एक गोपिका के...

यदि सोचा जाय
परे सभी कथाओं के
महारास कुछ नहीं 
बस स्थिति है 
प्रेम के घटित होने की 
मिट जाते हैं जहाँ 
सब अंतर 
और 
होता है दृष्टव्य चहुँ ओर 
प्रेम मात्र प्रेम..

रूपकों की यह 
रोलम झोल 
ना जाने क्योंकर 
दिखा देती है 
किस को क्या ? 
बना दिया गया है 
आज किन्तु 
पर्याय महारास को 
अतृप्त वासना का 
जिसमें देह-क्रीडा को 
औढा दिया जाता है 
लबादा आध्यात्म का 
और 
समझने लगते हैं 
क्रीड़क़ स्वयं को 
राधा और कृष्ण...

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