Tuesday 14 December 2021

डिप्रेसन....

 पैंटिंग्स : सहज सृजन 

============

डिप्रेसन....

#####

मोड़ लिया है 

रुख़ अपना तूफ़ान ने 

गुजर गया है छूकर 

कमजोर पड़कर,

कटार की चमकती धार सी

बह रही है तेज हवाएँ अभी भी,

बारिश की भयंकर बौछार 

फिर अचानक मंद हो जाना,

लगातार टिप टिप की आवाज़ 

ज्यों अज़ाखाने  में 

बकरे के कटे सिर से टपकता 

लाल लाल खून,

अजीब सी हलचल 

अंदर बाहर लड़खड़ाहट 

उदासीनता में डूबा आलम 

ऊहापोह हताशा

उलझे उलझे सोच,

सूरज चाँद  गिरे हैं धड़ाम से 

लुढ़के और फिसल गए हैं 

गहरी खाई में,

कलम कर लिए हैं फूलों ने 

सिर अपने अपने,

नोचें हैं काली बिल्ली ने 

पंख कबूतर के 

लटक गयी है तड़फते तड़फते 

गर्दन उसकी,

डरावनी म्याऊँ म्याऊँ चीखती कातिल 

हो गयी है खुद भी हलाक 

ना जाने क्यों, 

ज़िंदा बची हूँ तो बस मैं,फ़क़त मैं 

और मैं....

नहीं चाहती अब और जीना...


(अज़ाखाना=कसाई खाना)

No comments:

Post a Comment