Sunday 30 August 2020

अलिफ,,,,



अलिफ,,,

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काग़ज़ पे लिखा अलिफ,अल्लाह से मिला दिया 

दीवाना हुआ था मैं और ख़ुद को गला दिया,,,


जीने को वफ़ादारी मैं ने क्या क्या भूला दिया 

ख़ुद को ख़ुद से जला कर दीपक जला दिया,,,


जुनूने इश्क़ में जाने क्या क्या गँवाया मैं ने 

हुआ दर बदर आख़िर,घर अपना जला दिया,,,


मैय्यत पे आए मेरी वो सोलहों सिंगार कर 

चाहत ए रक़ीब में,यह कैसा सिला दिया,,,


मासूमियत उनकी का आलम ज़रा देखो 

छुकर बर्गे गुल से ज़ख्मों को सला दिया,,,


कहते हैं बेवफ़ा हुए परस्तिश में मेरी को 

अनगिनत नाम दे दिए, बुत भी ढला दिया,,,


लिपटा कर उसने नफ़्स को गिलाफे इश्क़ में 

आँखों में झूठे प्यार का सपना पला दिया,,,


साजे शिकस्ता से हुई उम्मीद-ए-सदा मेरी 

चाहा अंदोह रुबा नग्मा, के पाँवों चला दिया,,,


ज़वाले हस्ती की वुसअत ना पूछो वही बेहतर

रुजू ए क़ल्ब ने फिर से क्या क्या टला दिया,,,


उस शोख़ की नज़रें, मरहम का यक फाहा थी 

देकर सुकूँ रूह का, चोटों को सहला दिया,,,


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मायने :

मैयत=लाश, सला=बुलावा, call, परस्तिश=पूजा, बर्गे गुल=फूल की पंखुड़ियाँ,बुत=मूर्ति, नफ़्स=काम वासना, गिलाफ = आवरण, खोल,साज=वाद्य, शिकस्ता=भग्न,जीर्ण, सदा=पुकार, अंदोह=दुःख, क्लेश  रुबा=ले भागने वाला,  ज़वाल=पतन, हस्ती=अस्तित्व, जीवन, वुसअत=विस्तार, दर बदर =बेघर, अलिफ=अरबी और उर्दू वर्णमाला का पहला अक्षर जिदक 'अ' जैसा उच्चारण होता है,रुजू ए क़ल्ब=हृदय के आकर्षण

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