Thursday, 26 December 2019

तुम्हारी रहस्यमयी आँखें,,,,,


तुम्हारी रहस्यमयी आँखें,,,,
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तुम्हारी रहस्यमयी आँखे
ना नीली है
ना ही हरी या ग्रे
हर रंग अधूरा-पूरा
मिली जुली रंगत
अद्वितीय और नित्य नवीन !

कराते है ख़याल मुझ को
ये एक जोड़ा नयन :

गरम मौसम के समंदर का
है जिसमें
गहराई भी, चंचलता भी, विस्तार भी
देते हुए एहसास
शांत शीतलता का,,,,

अडिग सदाहरित पहाड़ के
जैतूनी छोर का
बताता है जो
हर दिन की सुबह और शाम को,,,,

नयी फूटी कोंपलों का
मासूम लालिम हरा रंग जिनका
प्रतीक है नई शुरुआत का,,,

सर्दी की सुबह में जमे पाले का
चूम रखा हो जिसने
किसी जंगली हरे पत्ते को
कहता है जो कहानी
द्वैत के अद्वैत की,,,

पतझड़ के पतों का
होते हैं जो परिपक्व
अपने अपने रंगों में
घटाटोप 'ग्रे' पतझड़ के साथ,,,

बेताब चकोर का
जीता है जो
अपनी आँखों में बसा कर
चमक अपने चाँद की,,,

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