Monday 1 July 2019

ना जैय्यो कोई क़रीब : विजया



ना जईय्यो कोई क़रीब !
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चमचमाती नज़रें
तवस्सुम ललचाती सी
कहकहे हैं शैतानी
मनसूबे बेहद घिनौने
एक निगाह खोटी
छीन ले जो बहोत कुछ...

लबों पर अहद
ज़ेहन में है जद्दोजहद
हरदम अना है हावी
बन कर
शख़्सियत की चाबी
बेपरवाह है अंजाम से
गँवा दे जो सब कुछ...

हल्का ए नूर नक़ली
काले अंधेरे असली
मुस्कान के दिखावों में
छुपे हैं गुनाह कितने
इश्क़ कहूँ के फ़रेब
ना जईय्यो कोई क़रीब  !

(अना=अहम/ego, अहद=वादे/promises, हल्का ए नूर=चमक का गोल चक्कर/halo)

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