Wednesday 16 January 2019

आग और पानी ,,,,

थीम सृजन
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आग और पानी,,,
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हैं वे दो
जिन्हें मैं करता हूँ
बेहद प्यार,
'आग और पानी'
बस ऐसे ही तो पुकारे जा सकते हैं वे...
दोनों हैं एक जैसे ही
कई मायनों में
दोनों ही तो है
ज़िद्दी,ताक़तवर और मज़बूत,
दोनो ही कभी नहीं चाहते
ग़लत होना,,,,,,,

लाते हैं वे
जीवन्तता और आनन्द
मेरे हर जीवन वृतांत में
आग तूफ़ानी ऊर्जा के साथ
पानी अनंत मुस्कान के साथ,
उन्होंने बताया है मुझ को
अंतर भले और बुरे का
कराई है पहचान
बातों से जो अहम हैं
भूला नहीं पाता जिन्हें
मैं कभी भी,,,,,,,,

अच्छा लगता है
मुझे खुद में महसूस करना
उन दोनों को,
जुड़े थे वे संग मेरे
एक ख़त्म ना होने वाली
लकीर से
जन्म जन्मांतरों से
हृदय की असीम गहरायीयों में
रूहों  की पकीजगी के साथ,,,,,

सोचता रहा था
पाकर साथ उनका
जैसे हो गयी हो
सारी कायनात हमारी,
आग कुछ सोचती
तो पानी ज़ोरों से वही बोलता
पानी को कुछ महसूस होता
लगता यूँ कि आग को तो
मालूम है वह पहले से ही,,,,

सोचा था मैंने
करता रहूँगा सामंजस्य और संतुलन
दोनों के बीच
होता रहेगा सब कुछ आसान और अर्थपूर्ण
मगर उन दोनों ने
कर ली है अख़्तियार जुदा जुदा राहें
लगता है दोनो ही पहुँच गए हैं
सड़क की दो विरोधी दिशाओं पर,
सोचने भी लगे हैं
नहीं हो सकती अब घर वापसी,
सोचा था जानता हूँ मैं
क्या करना होगा मुझ को
लेकिन जो कुछ सामने दिख रहा है
वह है एक हमला घबराहट देने वाला,,,,,

उनकी यह लड़ाई
तोड़ डाल रही है दिल मेरा,
हो रही है छिन्न भिन्न
सहज सी जिंदगानी मेरी
सोचा था मैंने कर पाउँगा कुछ तो मैं
लेकिन
कहाँ बचा है मेरे पास चारा कोई
सिवा मौन और स्थिर खड़े रह कर
सिलकर होंठ अपने
करते हुए इंतज़ार,,,,

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