Friday 3 April 2015

राजस्थानी कुण्डलियाँ : विजया

राजस्थानी कुण्डलियाँ

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(1)
कामणगारी कामणी तिरछा बिण रा नैण
बोल कोल री बात के, समझे सगली सैण,
समझे सगली सैण, होळ स्यूं आडो खोले,
छेलो घणों चलाक, आहिस्ता भीतर हो ले.
(कामणगारी कामणी=टोनेबाज कामिनी, बिण रा=उसके, सैण=इशारा
आडो=दरवाज़ा)
(2)
सौ हुवे सुनार री, एक लुहारी चोट
हिये च्यानणों चिळकज्या,पड़यां धमाधम सोट
पड़यां धमाधम सोट, अकल आडू ने आवे
भागे तेतिसा देय, फेर ना पाछो आवे.
(च्यानणों=प्रकाश, चिळकज्या=चमक जाता है,
सोट=लठ्ठ, आड़ू=बददिमाग, तेतिसा=तेज़ दौड़-मुहावरेदार)
(3)
ज्ञान भरम रो गुमड़ो, मांय तरक री राध
बात बात रगड़ो रचे, बात बात जिद बाद
बात बात जिद् बाद, अरथ न अनरथ कर दे
जिण हांडी ना पाव समाय, उठे पंसेरी भर दे.
(गुमड़ो=फोड़ा, राध=मवाद, रगड़ो=झंझट/विवाद, जिद-बाद=जिद्द/rigidity,पाव=1/4 सेर)
(4)
अकल हिये री फूटरी मिनख जमारे सोय*
पोथी भण घणा मरया, पंडत भया ना कोय,
पंडत भया ना कोय, थोथ में जोत जगावे
चेला चेली रो टोळ, एवड़ ज्यूँ हांक्या जावे.
(फूटरी=सुन्दर, मिनख=मनुष्य, जमारो=जन्म,सोया=सोहता है/ अच्छा लगता है भण=पढ़ कर, थोथ=थोथी जगह, टोळ=झुण्ड, एवड=भेड-बकरी का झुण्ड, हांक्या=हांके:हांकना क्रिया)
*जेहन/दिल की अक्ल (विवेक) ही सटीक/सुन्दर होती है और वही मनुष्य योनि पर शोभित होती है.

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