Friday 3 April 2015

वो मर गया है

वो मर गया है
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वो मर गया है 
मगर
हिलडुल तो रहा है
साँसे भी ले रहा है
चल भी रहा है
फिर भी रहा है
बोल भी तो रहा है..
देखो,
यह सब तो बातें हैं
इस सराय की
जिसमें रहता था वह
कब से टिके हुए
मुसाफिरों की
एक भीड़ के साथ
जिसमें से एक
हुआ करता था
वो खुद भी,
जो दिख रहा है
वह 'वो' नहीं
वही सराय तो है
जिसे तुम कह देते हो
उसका जिस्म
उसकी शख्सियत
उसका वुजूद..
कहाँ है वो होशमंद ?
जो सब कुछ देख लेता था
एक लम्हे में,
समझ भी लेता था
अनकही बातें मन की,
कहाँ वह जिंदादिल शख्स
जिसके ठहाके
कोसों भगा देते थे
उदासियों को,
कहाँ है उसकी वो बातें
जो बरपा कर देती थी
ज़ज्बा जीने का,
कहाँ गया वो नूर
उसकी आँखों का
महज़ एक नज़र ही उसकी
हुआ करती थी मौजूँ
जां फूंकने
मुर्दा दिलों में....
खून किया है
किसी ने
के कर ली है
उसने ख़ुदकुशी
या हो गया है बेहोश
मगर क्यूँ लगता है ऐसा :
वो मर गया है...
(अगला शब्द : मुसाफिर)

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