वशीकरण
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('पजेसिवनेस' को, खासकर, चाहत और प्यार का एक अभिन्न अंग माना जाता है..कितने ही 'बुध्दिजीवीय' विमर्श हो जाए इस पर, क्लेरिटी से सोचने समझने एवम निरंतर अभ्यास और अनुभवों के बिना इस से निजात पाना मुश्किल ही होता है..हमारी कल्चर में पजेसिवनेस' के इस ज़ायकेदार भाव को लेकर बहुत कुछ लिखा और गाया गया है..हमारी फिल्में भी इसे खूब डेपिक्ट करती है. मेरा चिंतन जो भी हो इस पर, मैंने इस मुक्त कविता
में कोशिश की है एक शिद्दत से प्यार करने वाली संगिनी के मनोभावों/designs को शब्द देने की. इस रचना में एक folk वाला आयाम है.(ठेठ राजस्थानी में एक बंध इसीलिए लिखा है.) फिर कभी intellectual आयाम के expressions को भी शब्द देने की कोशिश करूँगा.)
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वशीकरण
# # #
मत जाना
करीब उसके
पिला देगी
घोल कर कुछ भी
शरबत में,
बांध रखा है उसने
एक मंत्राया पुतला
अपने सहन में
खड़े पीपल की शाख पर
सुना है जो भी गुज़रता है
उसके साये से होकर
रह जाता है वह
उसीका होकर,
आँखों में लगाती है
जो काजल वो
दरिया किनारे के
दरवेश-बाबा से लायी है
जिसको भी देख ले
उसकी तो बस
राम दुहाई है,
ना रख देना पाँव
उसकी बनायी अल्पना में
कितनी रातें
बिता कर मसान में
साधा है उसने
मारण और वशीकरण
जो घेरे, त्रिभुज, चतुर्भुज
बने हैं उसमें
ना जाने किसमें मांडी हो
तुम्हारे खातिर
कोई संगीन सी जकड़न...
सुणज्यो जी
अरज आ म्हारी
औ म्हारा ढोला लशकरिया !
औ म्हारा जोड़ी रा भरतार !
औ म्हारा काळजिये रा हार !
म्हें करूँ सा थान्स्यु मनुहार !
मत जाज्योसा पोळयां बिण री
हाट हठीली है वो
मन री काळी है वो
जाण जुगारी है वो
कामणगारी है वो....
(ढोला लशकरिया= ढोला मारू की प्रेम कहानी बहुत नामी है राजस्थान में . मेल पार्टनर को ढोला कहा जाता है....लश्करिया शब्द झुण्ड/जाते को denote करता है. राजस्थान से सैन्य दल या बिणजारे सौदागर इत्यादि जत्थों में सुदूर की यात्राएं करते थे.
भरतार= पति,पोळयां=दरवाज़ा, बिण री=उसकी, जाण जुगारी=बहुत बड़ी ज्ञाता, कामणगारी=जादू टोना करने वाली.)
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('पजेसिवनेस' को, खासकर, चाहत और प्यार का एक अभिन्न अंग माना जाता है..कितने ही 'बुध्दिजीवीय' विमर्श हो जाए इस पर, क्लेरिटी से सोचने समझने एवम निरंतर अभ्यास और अनुभवों के बिना इस से निजात पाना मुश्किल ही होता है..हमारी कल्चर में पजेसिवनेस' के इस ज़ायकेदार भाव को लेकर बहुत कुछ लिखा और गाया गया है..हमारी फिल्में भी इसे खूब डेपिक्ट करती है. मेरा चिंतन जो भी हो इस पर, मैंने इस मुक्त कविता
में कोशिश की है एक शिद्दत से प्यार करने वाली संगिनी के मनोभावों/designs को शब्द देने की. इस रचना में एक folk वाला आयाम है.(ठेठ राजस्थानी में एक बंध इसीलिए लिखा है.) फिर कभी intellectual आयाम के expressions को भी शब्द देने की कोशिश करूँगा.)
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वशीकरण
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मत जाना
करीब उसके
पिला देगी
घोल कर कुछ भी
शरबत में,
बांध रखा है उसने
एक मंत्राया पुतला
अपने सहन में
खड़े पीपल की शाख पर
सुना है जो भी गुज़रता है
उसके साये से होकर
रह जाता है वह
उसीका होकर,
आँखों में लगाती है
जो काजल वो
दरिया किनारे के
दरवेश-बाबा से लायी है
जिसको भी देख ले
उसकी तो बस
राम दुहाई है,
ना रख देना पाँव
उसकी बनायी अल्पना में
कितनी रातें
बिता कर मसान में
साधा है उसने
मारण और वशीकरण
जो घेरे, त्रिभुज, चतुर्भुज
बने हैं उसमें
ना जाने किसमें मांडी हो
तुम्हारे खातिर
कोई संगीन सी जकड़न...
सुणज्यो जी
अरज आ म्हारी
औ म्हारा ढोला लशकरिया !
औ म्हारा जोड़ी रा भरतार !
औ म्हारा काळजिये रा हार !
म्हें करूँ सा थान्स्यु मनुहार !
मत जाज्योसा पोळयां बिण री
हाट हठीली है वो
मन री काळी है वो
जाण जुगारी है वो
कामणगारी है वो....
(ढोला लशकरिया= ढोला मारू की प्रेम कहानी बहुत नामी है राजस्थान में . मेल पार्टनर को ढोला कहा जाता है....लश्करिया शब्द झुण्ड/जाते को denote करता है. राजस्थान से सैन्य दल या बिणजारे सौदागर इत्यादि जत्थों में सुदूर की यात्राएं करते थे.
भरतार= पति,पोळयां=दरवाज़ा, बिण री=उसकी, जाण जुगारी=बहुत बड़ी ज्ञाता, कामणगारी=जादू टोना करने वाली.)