Monday 23 February 2015

धूल

धूल (आशु रचना)
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झोंकी थी
धूल
आँखों में
बेदर्द ज़माने ने,
ले ली थी हमने
सिर पे
अपने फ़साने में.
मासूमियत के
छलावे को
समझा था
मोहब्बत हमने,
ना छोड़ी थी
कसर उसने
खूं को बहाने में..
अश्कों के शैलाब में
बह गया था
गम मेरा,
महफ़िल सजाई थी
उसने
अपने मयखाने में..

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