Friday 23 July 2021

सुर आठवाँ भी मगर...: विजया

 

सुर आठवां भी मगर...

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लिख डाला था 

मोहब्बत में 

एक दीवान मैं ने,

ऐसा गुरुर के

पढ़कर भी न पढ़ा 

तुमने एक भी हर्फ़ को...


नाकाम रहा 

साजे दिल से निकला 

संगीत मेरा,

पिघला ना सका 

पत्थर सी जमी 

दिल की बर्फ़ को...


सजाया था 

सातों सुरों से

बज्मे मोहब्बत को,

सुर आठवाँ भी मगर 

छू ना पाया 

प्यासे जर्फ़ को...


(विलंब के लिए क्षमा प्रार्थना)

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