थीम सृजन : स्त्री
मेरे जीवन की स्त्रियाँ
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अखिल ब्रह्मांड स्त्रेण और पुरुषेण गुणों का समन्वय, सम्मिलन या योग है. स्त्री उतनी ही महत्वपूर्ण जितना पुरुष...बल्कि स्त्री अधिक महत्वपूर्ण : स्त्री ब्रॉड्ली वह सब कुछ कर सकती है जो एक पुरुष कर सकता है लेकिन पुरुष बहुत कुछ वो नहीं कर सकता जो स्त्री कर सकती है. 😊
'स्त्री' से मैं और मेरी कलम कुछ 'विशेष' रिलेट कर पाते हैं. आज खंडन-मंडन, तर्क-वितर्क से परे मैं अपने जीवन में नाना रूपों में आई कुछेक 'स्त्रियों' पर लिख रहा हूँ, जस का तस..सार संक्षेप के रूप में, बतौर सैम्पल....इस फ़ेज़ में जन्म से लेकर टीन ऐज में एंट्री से पहले तक को कवर कर रहा हूँ, वक़्त आने पर बाक़ी आगे का भी 😊😊
(१)
उसको देखा नहीं
महसूस किया है
जिस्म के हर हिस्से को
छूने से एहसास है उसका
नस नस में बहते खून में
रवानी है उसकी
फ़र्क़ नहीं है कोई
अल्लाह, आद्या और उसमें....
(२)
अंकुर को बूटा बनाया
उसके प्यार की सींचन ने
धूप छाया खाद
निराई गुड़ाई
सब कुछ भी तो किया उसने,
रक्त सम्बन्धों और स्वार्थों से परे
इंसानियत क्या होती है
पाया उसके हर रूप में,
प्रेम, करुणा, विवेक के
सारे सबक़ सीखे हैं उस से
उसके तसव्वुर की तस्वीर हूँ मैं
मेरे हर रंग में समायी है वो...