पैंटिंग्स : सहज सृजन
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( युगल कविता )
साहेब द्वारा स्तुति 😊:
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भाग्य मेरा मुसकाया है : विनोद सिंघी
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सुंदर कितना चाँद सा चेहरा
केश राशि ज्यूँ मेघ घनेरा
दमके दामिनी स्वर्ण रेख सी
बारम्बार लगाए फेरा...
उन्नत भाल दर्पण है मानो
देखा करूँ बिम्ब मैं अपना
नयन तुम्हारे चंचल चंचल
रहे देखते दिन में सपना...
धवल दंत मुक्तामाला से
अधर गुलाबी धागा है
सुंदर ग्रीव हंसिनी जैसी
रंग सोने संग सुहागा है...
पौर त्रय अंगुल समरूप है
ताम्बूल सम है भव्य हथेली
देह समानुपात सुकोमल
अल्हड़ यौवन करे अठखेली...
बिखरा मधु चारु कपोल पर
सज्जित लाज लोल लोचन पर
मन लुभाय तन को भरमाये
क्यों हठ है फिर स्व-मोचन पर...
दृष्टव्य मुझे यह प्रेम क्षुधा है
शृंगारमयी यौवन वसुधा है
मौन निमंत्रण है अभिसार का
प्रकट घटित चौसठों विधा है...
सृष्टि की तुम कृति अनूठी
अनुपम सच या माया है
भुजबंधन में आज हो मेरे
भाग्य मेरा मुस्काया है ...
मेरी अभिव्यक्ति : प्रत्युत्तर
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पुष्प तोड़ तुम लगे खोजने : विजया सिंघी
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शब्द संधान कुशल हूँ मैं भी
चला सकूँ मैं बाण सुनहरे
उन्माद अद्भुत जिया है हमने
अब तो तुम कुछ पैठो गहरे...
तन यात्रारत नयन तुम्हारे
मन को कैसे समझेंगे
क्षण भंगुर क्या इष्ट तुम्हारा
कब तक ये यूँ भटकेंगे...
नयनों की करुणा ना बांची
ना किया हृदयंगम हास को
पुष्प तोड़ तुम लगे खोजने
सुखमय स्निग्ध सुवास को...
अंग अंग तक करके विचरण
अंतर तक क्या पहुँचे हो ?
समानुपात सुकोमल कहते
सोचो तुम कितने सच्चे हो ?
अंग तुम्हें सर्वत्र मिलेंगे
किंतु ना मैं मिल पाऊँगी
ना सकी रीझा स्तुति तुम्हारी
सौगंध ! मैं ना हिल पाऊँगी...
प्रशंसा मेरे अंग प्रत्यंग की
क्षणिक उत्तेजन कर पाए,
पहुँचे हृदय तक उसी द्वार से
या शब्द आवृत्तन कर जाए ?
यौवनरस अनुपान है वांछित
क्या वहीं हमें रुक जाना है
प्रेम मिलन विस्तारण कर या
सत् चित्त आनन्द पाना है ?
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