प्यार भी है मौसम सा...
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(1)
तुमने कह दिया था ना
नहीं जानते अब तुम मुझ को
मेरे मिज़ाज, मेरी शख़्सियत,
मेरे किरदार
बदलते रहते हैं सारे..
सुबह जब होती है
हुआ करती हूँ मैं
मीठी मीठी ख़लीक़ ओ रूमानी
दोपहर जब गर्म ओ मर्तूब हो जाती है
मैं हो जाती हूँ
हक़ीर ओ सख़्त जुबान
और
फेंक देती हूँ तुम पर
अपनी बदमिज़ाजी ओ चिड़चिड़ापन....
(2)
मैं नहीं जानती
क्या है सच
क्या है झूठ
मगर कहानी है कुछ ऐसी सी....
एक सुनहली धूप भरे आकाश वाले दिन
परवान चढ़ा था
हमारी मोहब्बत का अफ़साना
बजाई थी तालियाँ सारी कायनात ने
मनाने को इस अज़ीम दास्ताने इश्क़ का जश्न,
उफ़्फ़ ! अचानक एक दिन
घिर आए थे काले बादल
चुरा ले गए थे वे
सूरज सी मुस्कान को
चला गया था इश्क़ बेहोशी की नींद में
शायद दो एक साल के लिए....
और एक दिन रिमझिम बारिश वाले दिन
हमें सतायी थी याद
उन कोमल कोमल प्यार भरी
भीगी भीगी ठंडी रातों की
हो गए थे तब एकमेक हम
अपने ही बनाए
प्यार के घरौंदे में
समा कर एक दूजे में
उस बरसते हुए
सारे के सारे दिन में...
वह आधी रात थी
जब तेज तूफ़ान आया था
बहुत गंदा सा था ना वह मौसम
ना जाने क्यों मजबूर हो गए थे
इस दीवार को बनाने को
और क़ायम कर ली थी दूरी अपनी फिर से,
एक खोखला सा ख़ालीपन बरपा था
अपने दरमियान पूरे साल
कितने तड़फते रहे थे
अपने आशियाने मोहब्बत के एहसासों के लिए
मगर फिर भी दोनों की अना ने
पसंद किया था
रेशम के कीड़े के खोल में पड़े रहना...
(3)
आज कुछ गर्म सा दिन है
सूरज भी अलसाया सा बाहर आ रहा है
फ़िज़ा मे गरमी है ज़रा सी
कोशिश की है मैं ने मुस्कुराने की
कहा भी है तुम्हें, "हेल्लो",
जकड़ लिया है तुमने हाथ मेरा
और कहा है : कभी ना बदलना
मुस्कुरा रही हूँ मैं
अपनी अश्क़बार आँखों में
याद करते हुए
उन सभी मौसमों को
जब जब हमने प्यार किया था
जब जब हमने नफ़रत की थी
उफ़्फ़ ! कितना जाया कर डाला है
वक़्त हमने ?
यह तुम हो
यह मैं हूँ
कितना प्यार करते हैं हम एक दूजे से
क्यों बदलें हम मौसम के साथ ?
हो सकती हूँ मैं अंधड़ कभी
तो कभी बवंडर भी
मेरा दिल मगर धड़कता है वैसे ही
बबजूद मौसमों के बदलने के,
यक़ीन करो, मेरे प्यार !
मैं कभी नहीं बदली...
कभी भी नहीं....