धूनी रमा गये...
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अधिकार मुझे तुम थमा गये
न जाने ख़ुद कहाँ समा गये.
हो गया जीवन परम्परामय
हमको पद पर जो जमा गये.
जज़्बात तिज़ारत हो ही गये
खोया किसी ने कोई कमा गये.
चाहत रस्मों में ढल जो गयी
पाकर सब कुछ हम गँवा गये.
आये थे संग जीने के लिये
जगा अलख वो धूनी रमा गये.
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