Saturday, 24 November 2018

फ़ना : विजया



फ़ना.....
+++++++++
जो टूटा था वैसा ही मोहे फ़िर से साज दे दो
दिल की वो लरजती सी मीठी आवाज़ दे दो...

गुल सी नरम छुअन का फिर से अन्दाज़ दे दो
चाक है रूह मेरी उसे एक नया आग़ाज़ दे दो...

परदा हैं तो क्या आँख तज़ल्ली-साज दे दो
रस्मों का अज़्म टूटा, जीने का दरबाज दे दो..

हबीब हो हमदम हो  दिल के राज दे दो
ग़म ने मुझे है घेरा, मेरा जाँनवाज़ दे दो...

हर अना के ग़ुब्बारे का माक़ूल इलाज दे दो
करना है जिसको बर्बाद उसे बस ताज दे दो...

फ़ना हूँ मिटी हूँ तुझ पर मुझे मेरा नाज़ दे दो
इस अधूरी कहानी को अपने अल्फ़ाज़ दे दो...

(तज़ल्ली-साज=रोशनी देने वाली, आग़ाज़ =शुरुआत, जाँनवाज़=दयालु, कृपालु, दरबाज़=दरवाज़े के सेन्स में इस्तेमाल किया है.


No comments:

Post a Comment