Saturday, 24 November 2018

निकली हूँ दीपक लेकर : विजया



निकली हूँ दीपक लेकर....
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साथी बन हिम्मत की परछाईं देगा
मुझको अपनी कौन कलाई देगा...

निकली हूँ दीपक लेकर तूफ़ानों में
आम ख़ास हर शख़्स दुहाई देगा...

प्रकाश पहुँच गया अंतरमन तक
तिमिर में हर भेद दिखाई देगा....

धड़का दिल पीले पत्तों का
सन्नाटे में शोर सुनाई देगा.....

आज मेरे इस स्वच्छ दर्पण में
अपना हर एक रूप दिखाई देगा....

उठ गया मेरा एक प्रश्न भी
मुझ को कैसे आज सफ़ाई देगा...

पिटे हुए जुआरी बन के हार रहे हो
बना रहेगा क़र्ज़ कौन भरपाई देगा...

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